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जैनतत्त्वादर्श घोड़ा, नाव, रथ प्रमुख से दूसरों का बोझ वहे-ढोवे, भाड़े से आजीविका करे।
५. फोड़ीकर्म-आजीविका के वास्ते कूर, बावड़ी, तालाव खोदावे, हल चलावे, पत्थर फोडावे, खान खोदावे, इत्यादिक स्फोटिक कर्म है । इन पांचों कमों में बहुत जीवों की हिंसा होती है, इस वास्ते इन पांचों को कुकर्म कहते हैं।
अब पांच कुवाणिज्य लिखते हैं:
६. प्रथम दंतकुवाणिज्य-हाथी का दांत, उल्लु के नख, जीभ, कलेजा, पक्षियों के रोम, तथा गाय का चमर, हरण के सींग, वारासिंगे के सीग, कृमि-जिस से रेशम रंगते हैं, इत्यादिक जो ब्रस जीव के अंगोपांग बेचना है; सो सर्व दन्तकुवाणिज्य है । जब इन उक्त वस्तुओं को लेने के वास्ते आगर में जावेंगे, तब भिल्लादिक लोग तत्काल ही हाथी, गैंडा प्रमुख जीवों की हिंसा में प्रवृत्त होवेंगे, और महापाप अनर्थ करेंगे। तथा, वहां जाने से अपने परिणाम भी मलिन हो जाते हैं। कदाचित् लोभ पीड़ित हो कर मिल्ल व्याघों को कहना भी पड़े कि, हम को मोटा भारी दांत चाहिये, तब वो लोग तत्काल हाथी को मार के वैसा दांत लावेंगे। इस वास्ते जेकर वस्तु लेनी भी पडे, तो व्यापारी के पास से लेवे, परन्तु आगर में जाकर न लेवे । क्योंकि आगर में जाकर एक चमर लेवे, तो एक गाय मरे इस वास्ते विचार करके वाणिज्य करे।