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अप्पम परिच्छेद जाते हैं। तथा कईएक आचार्य और तरे भी द्रव्य का स्वरूप कहते है। परन्तु जो ऊपर लिखा है, सो ही बहुत से वृद्ध आचार्यों को सम्मत है। इस वास्ते द्रव्यों का परिमाण करे कि आज मैं इतने द्रव्य खाऊंगा।
३. विगय नियम-सो विगय दश प्रकार का है, तिन में१. मधु, २. मांस, ३. माखन, ४. मदिरा, यह चार तो महाविगय है, इन चारों का त्याग तो बावीस अभक्ष्य में लिख आये हैं, शेष छ विगय रहीं; तिन का नाम कहते है१. दूध, २. दही, ३. घृत, ४. तैल, ५. गुड़, ६. सर्वजात का पक्वान्न । इन छ विगय में से नित्य एक, दो, तीनादि विगय का त्याग करे, अरु एक एक विगय के पांच पांच निवीता भी विगय के साथ त्यागना चाहिये । जेकर निवीता त्यागने की मन में न होवे, तब प्रत्याख्यान करने के अवसर में मन में धारे कि मेरे विगय का त्याग हैं। परन्तु निवीता का त्याग नहीं।
१. उपानह-जूता पहिरने का नियम करे। पगरखी, खड़ावां, मौजा, वूट प्रमुख सर्व का नियम करे, क्योंकि यह सर्व जीवहिंसा के अधिकरण हैं। तिन में श्रावक ने जिनपूजादि कारण विना खडावां तो कदापि नहीं पहरनी, क्योंकि इन के हेठ जो जीव आ जाता है, वो जीता नहीं रहता है। अरु गृहस्थ लोगों को जूते के विना सरता नहीं, इस वास्ते मर्यादा कर लेवे। फिर दूसरे के जूते में पग न देवे,