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जैनतत्त्वादर्श मूलचूक-हो जावे तो आगार ।
५. तंबोल-सो चौथा स्वादिम नामा आहार है, उस का नियम करे। उस में पान, सोपारी, लवंग, इलायची, तज, दारचीनी, जातिफल, जावत्री, पीपलामूल, पीपर, प्रमुख करियाने की चीजें, जिन से मुख शुद्ध हो जावे, परन्तु उदर भरण न होवे, तिस को तंबोल कहते हैं। तिस का परिमाण करे।
६. वस्न नियम-सो पुरुष के पांचों अंगो के वस्त्रों का वेष पहरने की संख्या करे कि, आज के दिन में मेरे को इतने वेष रखने हैं, तथा इतने खुल्ले वस्त्र ओढ़ने हैं। तथा रात्रि को पहिरने के वस्त्र तथा स्नान समय पहिरने के वस्त्र की वेष में गिनती नहीं। समुच्चय वस्त्र की संख्या रख लेवे। अजान. पने भेल, संमेल हो जावे तो आगार ।
७. फूलों के भोग का नियम करे-सो मस्तक में रखने. वाले, अरु गले में पहिरनेवाले, तथा फूलों की शय्या, फूलों का तकिया, फूलों का पंखा,, फूलों का चंद्रवा, जाली प्रमुख जो जो वस्तु भोग में आवे, फूल की छड़ी, सेहरा, कलगी, अरु जो सूंघने में आवे तिन का तोल-परिमाण रखना।
८. वाहन का नियम करे-सो रथ, गाड़ी, घोड़ा, पालखी, ऊंट, बलद, नाव प्रमुख, जिस के ऊपर बैठ के जहां जाना होवे, तहां जावे । सो वाहन सर्व तीन तरें का है-१. तरता, २. फिरता, ३. उड़ता. तिन की संख्या का नियम करे कि