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जैनतत्त्वादर्श वक उसमें बीज नहीं पड़ा है, तहां तक अनंतकाय है, ३२. आल, रताल, पिंडाल, यह बत्तीस अनंतकाय का नाम सामान्य प्रकार से कहा है, अरु विशेष नाम तो अनेक हैं। क्योंकि कोई एक वनस्पति तो पञ्चांग अनंतकाय है, कोई का मूल अनंतकाय है, कोई का पत्र, कोई का फूल, कोई की छाल, कोई का काष्ठ; ऐसे कोई के एक अंग, कोई के दो अंग, कोई के तीन अंग, कोई के चार अंग, कोई के पांच अंग अनंतकाय है। ___ अब इस अनंतकायके जानने के वास्ते लक्षण लिखते हैं। जिसके पत्ते, फूल, फल, प्रमुख की नसें गूढ होवें-दीखे नहीं, तथा जिसकी संधि गुप्त होवे, जो तोड़ने से बराबर टूटे, अरु जो जड़ से काटी हुई फिर हरी हो जावे, जिसके पत्ते मोटे दलदार चीकने होवें, जिसके पत्ते अरु फल बहुत कोमल होवे, वे सर्व अनंतकाय जाननी ।
इन अभक्ष्यों में अफीम, मांग प्रमुख का जिसको पहिला अमल लगा होवे, तो तिस के रखने की जयणा करे। तथा रात्रिभोजन में चउविहार, तिविहार, दुविहार एक मास में इतने करूं, ऐसा नियम करे। तथा रोगादिक के कारण किसी औषधि में कोई अभक्ष्य खाना पड़े, तिस की जयणा रक्खे । तथा बत्तीस अनंतकाय तो सर्वथा निषिद्ध हैं, तो भी रोगादि के कारण से औषधि में खानी पड़े, तिस की जयणा रक्खे । तथा अजानपने किसी वस्तु में मिली हुई खाने