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________________ '११२ जैनतत्वादर्श होवे, तथा न किसी ने खाया होवे, सो फल भी अभक्ष्य है। क्योंकि क्या जाने कभी जहर फल खाया जावे, तो मरण हो जावे तथा बावला हो जावे। २१. चलित रस-सो जिस वस्तु का काल पूरा हो गया होवे अरु स्वाद बदल गया होवे~सो जब स्वाद बदल जाता है, तब तिस का काल भी पूरा हो जाता है। जिस में से दुर्गध आने लगे, तार पड़ जावें, सो चलितरस वस्तु है। यह भी अभक्ष्य है। रोटी, तरकारी, खिचड़ी, बड़ा, नरमपूरी, सीरा, हलवा, इत्यादि रसोई की अनेक वस्तु जिन में पानी की सरसाई है, ऐसी वस्तु एक रात के उपरांत अभक्ष्य है। तथा द्विदल-दाल बड़े, गुलगले, भुजिये जिन में पानी की सरसाई है, वे चार पहर के उपरांत अभक्ष्य हैं। जूगली की राब-स जो विना विदल के और ओदन छाछ में रांधा है, सो आठ पहर उपरांत अभक्ष्य है। तथा वर्षाकाल में अच्छी रीति से जो मिठाई बनी होवे, तो पंदरह दिन उपरांत अभक्ष्य है। जेकर पंदरह दिन से पहिले बिगड़ जावे, तो पहिले ही अभक्ष्य है। इसी तरे सर्वत्र जान लेना। तथा उष्णकाल में मिठाई की स्थिति वीस दिन की है, अरु शीत काल में मिठाई की स्थिति एक मास की है। उपरांत अभक्ष्य है। तथा दही सोलां पहर उपरांत अभक्ष्य है, छाछ भी दहीवत् जान लेनी । इस चलित रस में दो इन्द्रिय जीव उत्पन्न होते हैं, इस वास्ते यह अभक्ष्य है।
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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