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अष्टम परिच्छेद
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चढ़ा है, ऐसा कच्चा दही, कच्चा दूध, छाछ इन के साथ नहीं जीमना । अरु जेकर दही, दूध, छाछ गरम करी होवे फिर पीछे चाहे ठण्डा हो जावे, उसमें जो द्विदल मिला कर खावे तो दोष नहीं है ।
१८. सर्व जात के बैंगण एक तो बहुवीज हैं, इस वास्ते अभक्ष्य हैं । तिस के बीट में सूक्ष्म त्रस जीव रहते हैं । तथा बैगण काम की वृद्धि करते हैं, नीन्द अधिक करते हैं, कुछक बुद्धि को भी ढीठ करते हैं । इनका नाम भी बुरा है । इन का आकार भी अच्छा नहीं है । तथा कफ रोग को करता है । इनके अधिक खाने से चौथैया तप और खई रोगादि हो जाते हैं। और सब जात के फल तो सूखे भी खाने में आते हैं परन्तु यह तो सूखा भी खाने योग्य नहीं है । क्योंकि सूखे पीछे ये ऐसे हो जाते हैं, कि मानों चूहों की खलड़ी है । ताते यह द्रव्य अशुद्ध है, इस वास्ते अभक्ष्य है ।
१९. तुच्छ फल - जो दीड, पीलुं, पेंचु तथा अत्यंत कोमल फल सो भी अभक्ष्य हैं। क्योंकि ऐसी वस्तु बहुत मी खावे, तो भी तृप्ति नहीं होती है । अरु खाने में थोड़ा आता है और गेरना बहुत पड़ता है । तथा फल खाया पीछे तिन की गुठली जो मुख में चबोल के गेरते हैं, उस में असंख्य पंचेंद्रिय संमूच्छिम जीव उत्पन्न होते हैं । तथा जो पुरुष बहुत तुच्छ फल खाता है, तिस को तत्काल ही रोग हो जाता है ।
२०. अजाणा - अज्ञात फल- जिस का नाम कोई न जानता