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जैनतत्वादर्श प्रमुख फल । जिस में जितने बीज हैं, उस में उतने पर्याप्त जीव हैं । जो कि खाने में तो थोड़ा आता है, अरु जीवघात बहुत होता है। तथा बहुबीजा फड खाने से पित्त प्रमुख रोगों की अधिकता होती है, अरु जिनाज्ञा के विरुद्ध है।
१६. संघान-अथाणा-आचार तीन दिन से उपरांत का अमक्ष्य है। सो आचार अंब का, निंबु का, पत्र का, कर्मदा का, आदे का, जिमीकंद का, गिरमिर का, इत्यादि अनेक वस्तु का आचार बनता है । वह चाहे घी का होवे वा तेल का होवे वा पानी का होवे, सर्व तीन दिन उपरांत का अभक्ष्य है। परंतु इतना विशेष है, कि जो फल आप खट्टे हैं अथवा दूसरी वस्तु में खट्टा-अंबादिक जो मेल देवें, वे तो तीन दिन उपरांत अभक्ष्य है, अरु जिस वस्तु में खटाई नहीं है उसका आचार एक रात्रि से उपरांत अभक्ष्य है। क्योंकि इस आचार में त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं । अरु बिल्ल प्रमुख तो प्रथम ही अभक्ष्य हैं, तो फिर उनके आचार का तो क्या ही कहना है ! आचार में चौथे दिन निश्चय दो इंद्रिय जीव उत्पन्न हो जाते हैं। तथा जूठा हाथ लग जावे तो पंचेंद्रिय जीव भी उत्पन्न हो जाते हैं। दूसरे मतवालों के शाखों में भी आचार नरक का हेतु लिखा हैं। । १७. द्विदल-जिस की दो दाल हो जावें, अरु घाणी में पीलें, तो जिस में से तेल न निकले, ऐसे सर्व अन्न को द्विदल कहते हैं। तिस द्विदल के साथ जो गोरस अग्नि ऊपर नहीं