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अष्टम परिच्छेद नमस्कार सहित कहा है। रात्रिभोजन के दूषणों का जानकार श्रावक दो घड़ी जब शेष दिन रहे, तब भोजन करे। जेकर दो घड़ी से थोड़ा दिन रहे भोजन करे, तो रात्रिभोजन के प्रत्याख्यान का उस को फल नहीं होता है। जेकर कोई रात्रि को न भी खावे, परंतु जो उसने रात्रिभोजना का प्रत्याख्यान नहीं करा; तो उसको भी कुछ फल नहीं मिलता है। क्योंकि उसने प्रतिज्ञा नहीं करी है। जैसे कि कोई पुरुष रुपये जमा करावे अरु व्याज का करार न करे । उस को व्याज नहीं मिलता है। इस वास्ते नियम जरूर करना चाहिये।
___ अव रात्रिभोजन करने का परलोक में होनेवाला कुफल कहते हैं:
उलूककाकमाजारगृध्रशंबरशूकराः । अहिवृश्चिकगोधाश्च, जायंते रात्रिभोजनात् ।।
[यो० शा० प्र० ३, स्लो० ६७] अर्थः-उल्लू, काग, विल्ली, गृध्र-चील, बारासिंगा, सूअर, सर्प, बिच्छू, गोह इत्यादि तिर्यंच योनि में रात्रि भोजन करनेवाले मर के जाते हैं। अरु जो रात्रिभोजन न करें, उनको एक वर्ष में छ महीने के तप का फल होता है।
१५. बहुवीजा फल भी अभक्ष्य है। जिस में गिरु थोड़ा अरु बीज बहुत होवे, सो बैंगण, पटोल, खसखस, पंपोट