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अष्टम परिच्छेद दिन के पिछले भाग में पितर भोजन करते है, अरु सायान्हविकाल वेला में दैत्य दानव मोजन करते हैं, संध्या में-राव दिन की संधि में यक्ष, गुह्यक, राक्षस खाते हैं । " कुलोद्वहेति युधिष्ठिरस्यामंत्रणम् "-हे युधिष्ठिर ! सर्व देवतादि के वक्त का उल्लंघन करके रात्रि को जो खाना है, सो अमक्ष्य है। यह इन पुराणों के श्लोकों करके रात्रिभोजन के निषेध का संवाद कहा।
अव वैद्यक शास्त्र का भी रात्रिभोजन के निषेध का संवाद कहते हैं:
हनामिरमसंकोचश्चंडरोचिरपायतः। अतो नक्तं न भोक्तव्यं, सूक्ष्मजीवादनादपि ॥
[यो० शा० प्र० ३, श्लोक० ६०] अर्थ:-इस शरीर में दो पद्म अर्थात् कमल हैं। एक तो हृदय पद्म, सो अधोमुख है, दूसरा नाभिपद्म, सो ऊर्ध्वमुख है। इन दोनों कमलों का रात्रि में संकोच हो जाता है। किस कारण से संकोच हो जाता है। सूर्य के अस्त हो जाने से संकोच हो जाता हैं । इस वास्ते रात्रि को न खाना चाहिये। तथा रात्रि को सूक्ष्म जीव खाये जाते हैं, इस से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। यह परपक्ष का संवाद कहा । अब फिर स्वमत से रात्रिभोजन का निषेध कहते हैं: