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जैनतत्त्वादर्श कार करना दुष्कर है। अमली का स्वभाव बदल जाता है। जब अमल खाता है, तब एक रंग होता है, अरु जब अमल उतर जाता है, तब दूसरा रंग हो जाता है । तथा स्वतंत्रता छोड़ कर पराधीन होना पड़ता है। इसका खाने में स्वाद भी बुरा है। तथा विष खानेवाला जहां लधुनीति, बड़ीनीति करता है, तिस क्षेत्र में त्रस थावर जीवों की हिंसा होती है। सोमल, वच्छनाग, मीठा तेलिया, संखिया, हरताल प्रमुख ये सर्व विष ही में जानने, इसके खाने का त्याग करना।
१२. करक-ओले-गड़े जो आकाश से गिरते हैं, यह भी अभक्ष्य हैं।
१३. सर्व जात की कच्ची मट्टी अभक्ष्य है। कच्ची-सचित्त मट्टी नाना प्रकार की असंख्य जीवात्मक जाननी । मट्टी खाने से पेट में बहुत जीव उत्पन्न हो जाते है। तथा पांडु रोग, आंब, वात, पित्त, पथरी प्रमुख बहुत रोग उत्पन्न हो जाते हैं। बहुत मट्टी खानेवाले का पीला रङ्ग हो जाता है । तथा कितनीक जात की मट्टी में मेंडक प्रमुख जीवों की योनि है, इस वास्ते अभक्ष्य है। १४. रात्रिभोजन अभक्ष्य है। रात्रिभोजन में तो प्रत्यक्ष से
दूषण इस लोक में है, अरु परलोक में दुःख . रात्रिभोजन का का हेतु है। रात्रि में चारों आहार अभक्ष्य
निषेध हैं, रात्रि में जो जैसे रंग का आहार होता .. . है, तिस में तैसे रंग के जीव जिनका नाम