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________________ अष्टम परिच्छेद १०१ अर्थः--मक्खियों के मुख की जूठ, अरु जीवघात से अर्थात् हज़ारों बच्चों अरु अण्डों के मारने से उत्पन्न होता है; वो बच्चे, अण्डे जब मरते हैं, तब तिन के शरीर का लहू पानी भी मधु के बीच मिल जाते हैं। तत्र तो मधु महा अशुचिरूप है । अहो यह शब्द उपहास्यार्थ में है । क्योंकि जैसे वे देवता हैं, तैसी तिन को पवित्र वस्तु चढ़ायी जाती है, यह उपहास्य है । ' अहो शब्द उपहासे ' यथा: करभाणां विवाहे तु, रासभास्तत्र गायनाः । परस्परं प्रशंसंति, अहो रूपमहो ध्वनिः ॥ १०. पानी की बनी हुई बरफ़ अभक्ष्य है, क्योंकि यह असंख्य अकाय जीवों का पिण्ड है । इसके खाने से चेतना मंद होती है, अरु तत्काल सरदी करती है, कुछ चलवृद्धि भी नहीं करती है, अरु वीतराग अहंत सर्वज्ञ परमेश्वर ने इसका निषेध करा है; इस वास्ते यह अभक्ष्य है । पेट में कृमि, विष खाने से ११. अफीम प्रमुख विष वस्तु के खाने से गंडोलादिक जीव होते हैं, सो मर जाते है । चेतना मुरझा जाती है । अरु जेकर खाने का ढब पड़ जाता है, तो फिर छूटना मुश्किल होता है। वक्त पर अमल न मिले तो क्रोध उत्पन्न होता है । शरीर शिथिल हो जाता है । अरु जो अमली हो जाता है, उसको व्रत नियम अंग
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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