________________
अष्टम परिच्छेद मान् हैं । उनोंने भी मांस खाने में चौवीस दूषण प्रगट करे हैं। अरु मदिरा पीने से जो ख़रावियां होती हैं, तिन की तो गिनती भी नहीं है। इस वास्ते मदिरा अरु मांस इन दोनों प्रकार के अभक्ष्य को श्रावक त्यागे। ८. माखन अभक्ष्य है क्योंकि जैन मत के शासानुसार
___छाछ से बाहिर काढ़े माखन को जब अंतरमक्खन खाने मुहूर्त अर्थात् दो घड़ी के लगमग काल का निषेध व्यतीत हो जाता है, तब उस माखन में सूक्ष्म
जीव तद्वर्ण के उत्पन्न हो जाते हैं, इस वास्ते माखन खाना वर्जित है। जैन लोगों को छाछ से बाहिर माखन निकाल के तत्काल अग्नि के संयोग से घी बना के, छान के, देख के, पीछे से खाना चाहिये। क्योंकि एक तो इस रीति से शास्त्रोक्त जीव उत्पन्न नहीं होते हैं, तिन की हिंसा भी नहीं होती हैं। अरु मकड़ी, कंसारी, मच्छरादि जानवरों के अवयवटांग प्रमुख भी घी छानने से निकल जाते हैं । अरु माखन काम की भी वृद्धि करता है, तब मन में खोटे विकर उत्पन्न होते है। इस वास्ते भी श्रावक को माखन न खाना चाहिये। तथा एक जीव के वध करने से भी जब पाप होता है, तब तो पूर्वोक्त रीति से माखन तो जीवों का ही पिंड हो जाता है, तब माखन के खाने में पाप की क्या गिनती है !
प्रश्न:-माखन में तो दो घड़ी पीछे कोई भी जीव उत्पन्न हुआ हम नहीं देखते हैं, तो फिर माखन में दो धड़ी