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९६ . जैनतत्वादर्श खाने योग्य है। तब तो गौ का मूत तथा माता, पिता, भार्या, बेटी, इनका मूत पुरुष भी क्यों नहीं पीते खाते हैं ! क्योंकि यह प्राणी के अंग हैं। तथा अपनी भार्या की तरें अपनी माता, बहिन, बेटी को क्यों नहीं गमन करते हैं ! स्त्रीत्व अरु प्राणी का अंगत्व सर्व जगे बराबर है। तथा जैसे गौ का दूध पीते हैं, तैसे गौ का रुधिर तथा माता पितादिकों का रुधिर भी क्यों नहीं पीते हैं ? क्योंकि 'प्राणी का अंग'-हेतु तो सर्व जगह तुल्य हैं। इन वास्ते जो अन्न और मांस इन दोनों को तुल्य जानते हैं, वे भी महा पापियों के सरदार हैं।। ___ तथा शङ्ख को शुचि मानते हैं, परन्तु पशु के हाड़ को कोई शुचि नहीं मानता; इस वास्ते अन्न और मांस यद्यपि प्राणी के अङ्ग हैं, तो भी अन्न भक्ष्य है, अरु मांस अभक्ष्य है। एक पञ्चेन्द्रिय जीव का वध करके जो मांस खाता है, जैसी तिस को नरक गति होती है, तैसी खोटी गति अन्न खाने. वाले को नहीं होती है क्योंकि अन्न मांस नहीं हो सकता है, मांस की तसीरों से अन्न की तसीरें और तरें की हैं। जैसा मांस महाविकार का करनेवाला है, तैसा अन्न नहीं। इत्यादि कारणों से विलक्षण स्वभाव है। इस वास्ते मांस खानेवालों की नरकगति को जान कर संत पुरुष अन्न के भोजन से तृप्ति मानते हैं, सरस पद प्राप्त को होते हैं। ये मांस के दूषण श्रीहेमचन्द्रसूरिकृत योगशास्त्र के अनुसार लिखे हैं । तथा इस काल में भी युरोपियन लोग जो बुद्धि