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अष्टम परिच्छेद का खानेवाला आम्रफल देखता है, तब उस की मनशा अंब खाने ही को दौड़ती है, तैसे मांसाहारी किसी गौ, भेड, बकरी, प्रमुख को देखता है, तब उन जीवों का मांस खाने की तर्फ उसकी सुरती दौड़ती है, ऐसे पुरुष को दया धर्म, क्योंकर संभवे ! जेकर कोई कहे कि जीव के मारनेवाला तो सौकरिक अर्थात् कसाई है, तिस के पासों बना बनाया मांस लाकर खावे, तो क्या दोष है ! ऐसे मूढमति को उत्तर देते हैं, कि जो मांस खानेवाला है, वो भी जीव का हिंसक है, क्योंकि भगवंत ने शास्त्रों में सात जनों को घातक-हिंसक अर्थात् कसाई ही कहा है। उन के नाम कहते है:-एक जीव के मारनेवाला, दूसरा मांस बेचने चाला, तीसरा मांस रांधनेवाला, चौथा मांस भक्षण करनेवाला, पांचमा मांस खरीदनेवाला, छहा मांस की अनुमोदना करनेवाला, सातमा पितरों को, देवताओं को, अतिथियों को मांस देनेवाला | यह सात साक्षात् और परं. परा करके घातक अर्थात् जीव वध के करनेवाले हैं। मनुजी भी मनुस्मृति में कहते हैं।
अनुमंता विशसिता, निहंता क्रयविक्रयी। संस्कर्ता चोपहर्ता च, खादकश्चेति घातकाः ।।
[अ० ५, श्लो० ५१ अर्थः-१. अनुमोदक-अनुमोदन करनेवाला, २. विश