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जैनतत्वादर्श . १. मदिरा पीने से चतुर पुरुष की बुद्धि नष्ट हो जाती है,
जैसे दुर्भागी पुरुष को सुंदर स्त्री छोड़ जाती मदिरापान के है, तैसे इस पुरुष को बुद्धि छोड़ जाती है। दोष २. मदिरापायी पुरुष अपनी माता, बहिन,
वेटी को अपनी भार्या की तरे समझ के जोराजोरी से विषय भी सेवन कर लेता है, अरु अपनी भार्या को अपनी माता समझता है, मदिरा पीनेवाला ऐसा निर्लज्ज और महापाप के करनेवाला होता है। ३. मदिरापायी अपने अरु पर को भी नहीं जानता। ४. मदिरापायी अपने स्वामी को अपना किकर जानता है, अरु अपने को स्वामी जानता है, एसी निजबुद्धिवाला होता है । ५. मदिरा पीनेवाले पुरुष को चौक में लेटा हुआ देखकर, मुरदा जान कर कुत्ते उसके मुंह में मूत जाते हैं । ६. मदिरा के रस में मग्न पुरुष चौक में नंगा-मादरजात, निर्लज्ज हो कर सो जाता है । ७. मदिरा पीनेवाले ने जो गम्यागम्य, चोरी, यारी, खून प्रमुख कुकर्म करे हैं, वो सर्व लोगों के आगे प्रकाश कर देता है । ८. मदिरा पीने से शरीर का तेज, कीर्ति, यश, तात्कालिकी बुद्धि, यह सब नष्ट हो जाते हैं । ९. मदिरापायी भूत लगे की तरे नाचता है । १०. मदिरा पीनेवाला कीवड़ और गंदकी में लोटता है। ११. मदिरा पीने से अंग शिथिल हो जाते हैं । १२. मदिरा पीने से इन्द्रियों की तेजी घट जाती है। १३. मदिरा पीने से बड़ी मूर्छा आ जाती है।