________________
७९
अष्टम परिच्छेद वत् । जेकर नियम मंग के भय से गुमास्ता भेजे, तो भी अतिचार लगे। ___ चौथा क्षेत्रवृद्धि अतिचार-एक दिशा में सौ योजन रक्खे हैं, अरु एक दिशा में पचास योजन रक्खे हैं। पीछे जब एक ही दिशा में डेढ सौ योजन जाना पड़े तब दूसरी तरफ के पचास योजन भी उसी तरफ़ जोड़ लेवे, और अज्ञान से ऐसा विचारे कि मेरे नियम के ही पचास योजन हैं, इस वास्ते मेरे व्रत का भंग नहीं। ____पांचमा स्मृत्यंतर्धान अतिचार-सो अपने नियम के योजन को भूल जावे, क्या जाने पूर्व दिशा के सौ योजन रक्खे हैं ? कि पचास योजन रक्खे है ? इत्यादि, ऐसे संशय के हुए फिर पचास योजन से अधिक जावे, तो पांचमा अतिचार लग जावे। __ अथ सातमे भोगोपभोग व्रत का स्वरूप लिखते है। यह
दूसरा गुणव्रत है। इस व्रत के अंगीकार भोगोपभोग व्रत करने से सचित्त वस्तु खाने का त्याग करे,
अथवा परिमाण करे। तथा जिल में बहुत हिंसा होवे, ऐसा व्यापार न करे । तथा जिस काम में अवश्य हिंसा बहुत करनी पड़े तिस का त्याग करे। अभक्ष्य त्यागे, अरु चौदह नियम भी इस व्रत में गिने जाते हैं। इस वास्ते यह व्रत पूर्वोक्त पांच ही अणुव्रतों को गुणकारी है । इस व्रत के दो भेद हैं, सो कहते हैं।