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जैनतस्वादर्श
खिड़की बंद, अरु खुल्ली दुकान, तबेला, बुखारी, तथा परदेश, संबन्धी दुकान की जयणा, तथा इतना भाड़े देने के वास्ते घर को रखने की जयणा, तथा भाड़े लिये हुये घर को समराने की जयणा, तथा कुटुंब सम्बन्धी घर बनाने में उपदेश की जयणा, तथा अपना सम्बन्धी अरु गुमास्ता परदेश गया होवे, पीछे से तिस के घर प्रमुख समरावने की जयणा तथा आजीविका के वास्ते किसी की चाकरी करनी पड़े, तब उसके घर प्रमुख के समरावने की जयणा । तथा कुप्यपरिमाण में तांबा, पीतल रांग, लोहखण्ड, कांसी, भरत, सर्व मिल कर धातु के वरतन, तथा और घाट, तथा छूटा, इतने मन रखने की जयणा । तथा दुपद परिमाण में श्रावक ने दासी, दास को मोल दे कर नहीं लेना, परंतु पगारवाले नौकर गिनती में इतने रखने चाहियें, तथा गुमास्ता रखने की जयणा । तथा चौपद परिमाण में गाय, भैंस, बकरी प्रमुख रखने का परिमाण करे । अब इस इच्छा परिमाण व्रत के पांच अतिचार हैं, सो लिखते हैं ।
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प्रथम धनपरिणाम - अतिक्रम अतिचार - सो इस रीति से होता है । जब इच्छा परिमाण से धन अधिक हो जावे, तब लोभ संज्ञा से दिल में ऐसा मनसूबा करे, कि मेरा पुत्र जो बड़ा हो गया है, तिस को भी धन चाहिये, पुत्र को धन देना ही है। ऐसा कुविकल्प करके के पांच हजारादि रूपक जुदे रक्खे । तथा अन्न प्रमुख अपने
अरु मैंने भी
पुत्र के नाम