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परन्तु यह सब कुछ होते हुए इन्हे कुछ ही समय में यह भलीभाँति विदित होगया था, कि उनकी योग्यता के सदुपयोग के कारण यह क्षेत्र पर्याप्त एव समुचित नहीं है। अतएव समुचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगे।
राजनैतिक जीवन मे प्रवेश
१९१६ मे जव असहयोग आन्दोलन प्रारभ हुआ, और सारे देश मै आजादी की लहर दौड़ी तो इनसे भी न रहा गया। और एकदम विदेशी वस्त्रो की होली जलाकर स्वदेशी वस्तुमो का प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया। हालाकि उन दिनो पाप गवर्नमेट की मुलाजमत मे एक अच्छे पद पर नियुक्त थे। परतु केवल स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार से ही इनकी तपिश नही बुझी। आपने सरकारी नौकरी से भी स्तीफा देने का निश्चय किया और खामोशी के साथ राजनैतिक क्षेत्र में कार्य करने लगे।
सन १९२१ मे भिवानी में पोलिटिकल कान्फ्रेस हुई। उसमे ला. तनसुखरायजी भी सम्मिलित हुए। इस कान्फ्रेंस का आपके मन पर वडा प्रभाव पड़ा। आपने राजनैतिक जीवन मे कार्य करने का निश्चय कर लिया।
देश के नेताओ की अपील पर आप सत्याग्रह आन्दोलन मे कूद पड़ । परन्तु कुछ ही समय में महात्मा गाधीजी की आज्ञा से जब यह आन्दोलन स्थगित कर दिया गया तो इन्हें भी पुन. व्यापारिक कार्यक्षेत्र मे लौटने का विचार करना पड़ा।
सन् १९२१ और २२ के दिन भारत के राष्ट्रीय उत्थान मे चढ़ाव के दिन थे। स्वाभिमानी नवयुवको में उत्साह की हिलारे उठ रही थी। भारत के नवयुवको के कान और ऑखें भारत माता की प्रातभरी पुकार सुनकर वेचैन थे। राष्ट्र की महान आत्मा ने फतवा दिया था कि सरकारी नौकरियां भारत की गुलामी को लोहे से भी ज्यादा सख्त बनाती है । अत. प्रत्येक भारतवासी को उन्हें त्याग देना चाहिए ।
इसी तेजाव मे डूबी हुई बात को सुनकर भारत के स्वाभिमानी व्यक्ति तक भी सह गए। फिर कमजोरो की क्या गिनती थी। पर भाई तनसुखरायजी में एक जीती-जागती आत्मा मौजूद थी। आपने वगाल के राष्ट्रीय जीवन के प्राण श्री सुभापचन्द्र बोस की तरह सोचा, दिमाग मे अक्ल है। शरीर मे जीवन मौजूद है। फिर कमाकर खाना क्योकर मुश्किल होगा। फिर पेट भरने के लिए यह दासता क्यो ? तनसुखराय खाली जेब और भरे दिमाग उस वैभवपूर्ण सफलता और वातावरण से निकल कर जीवन के मैदान मे कूद पड़े।
सन् १९२१ ने १९२७ तक काग्रेस और खासतौर से स्वदेशी का प्रचार करते रहे और अपने संक्डो मित्रो से स्वदेशी के प्रयोग करने का वचन लिया।
गवर्नमेंट सर्विस से स्तीफा देने के बाद आपके सामने आजीविका के प्रश्न नै कठोर और विपम प्रहार करना शुरू किए, पर भाप इच मात्र भी नहीं घबराए और पर्वत के समान अटल
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