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था यह महान आश्चर्य की बात है कि आप अपनी माता की कोच में बारह महीने रहकर इस घराधाम मे अवतीर्ण हुए। आपके जन्मदिन की पिछली रात को इनकी माताजी को स्वप्न में एक नग्न दिगम्बर मुनिराज के दर्शन हुए; जिन्होने कहा था कि प्रातःकाल तुम्हारे उदर से एक पुण्यात्मा, प्रतिभा सम्पन्न, प्रतापी पुत्र जन्म लेगा जो अपनी प्रखर बुद्धि से ससार में कई लोकोपकारी कार्य करके अपने कुल का नाम रोशन करेगा और सदा उसकी कीर्ति वढेगी । लाला तनसुखराय ने भटिंडा में रहकर हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू की शिक्षा पाई।
वाल्यकाल से ही उनको वस्तुप्रो की सजावट तथा व्यवस्था का अधिक शौक रहा है तथा अवसर के अनुसार उनकी अनुपम सूझ उनकी उन्नति का रहस्य है जिसका दिग्दर्शन हमे उनके बाल्यकाल के कार्यों से मिलता है। इस सम्बन्ध में चपन की एक घटना अत्यत आकर्षक है।
'होनहार विरवान के होत चीकने पात' वालक तनसुखराय जव छोटे ही थे तो उन्होने मेले के दिनो मे कुछ लोगो को छोटी-छोटी चीजो की दुकानें लगाकर विक्री करते देखते ही
:उनके मन में भी इसी प्रकार का कार्य करके लाभ उठाने की सूझी। मित्रमडली को साथ लेकर मेले मे बच्चो के खिलौने की दुकान लगा ली और उसमें कई रुपये पैदा किये। इस घटना का पता घर वालो को उस समय लगा जब कि आमदनी के रुपये उन्होने घर जाकर दिये। इसी प्रकार की सामयिक सूझ और संगठन के बहुत से कायों का परिचय उनके वाल्यकाल के छोटे-छोटे-कार्यों में लगता है। कार्यक्षेत्र में प्रवेश
बालक तनसुखराय अपने पांचो भाइयो मे अधिक व्यवहारकुशल और होनहार थे। इसलिए माता-पिता की दृष्टि इन पर विशेप रूप से रहती थी। पिताजी की हार्दिक इच्छा थी कि उन्हे उच्चकोटि की शिक्षा दी जावे। परन्तु १९१६ ई० मे पिता की आकस्मिक मृत्यु के कारण इन्हे अपनी पढाई समाप्त करनी पडी। और अन्य भाइयो के साथ १८ वर्ष की आयु मे ही इन्हे अन्य भाइयो के साथ घर का कार्यभार सम्भालना पड़ा। सन् १९१८ ई० मे आपने N. W. R रेलवे के D T.S के कार्यालय मे लेखक (Clerk) का कार्य प्रारभ कर दिया जो सन् १९२१ ई० तक सुचारु रूप से चलता रहा।
कार्यालय के उच्च पदाधिकारी आपकी कार्यशैली, व्यवहारकुशलता, कर्तव्यपरायणता, अनुशासनप्रियता, सत्यनिष्ठा और विनम्र स्वभाव के कारण इनसे बहुत प्रसन्न थे। २२]