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________________ ला जौहरीमलजी ने भटिंडा मे जनरल मर्चेण्ट और ठेकेदारी का कार्य प्रारम्भ किया हुआ था। लाजीहरीमलजी का केवल पंतालीस वर्ष की आयु में प्राकस्मिक बीमारी से स्वर्गवास हो गया । पिता की मृत्यु के पश्चात् ला० गणपतरायजी ने अपने पिता के कार्य-भार को सम्भाल लिया। परन्तु आकस्मिक व्यापार उलट-फेर के कारण सन् १९२३ ई० मे वे भटिंडा से पुन अपनी मातृभूमि रोहतक मे लोट पाए। बाल्यकाल प्रत्येक मनुष्य का वाल्यकाल उसके भावी जीवन का दर्पण है। यदि मनुष्य के स्वभाव और चरित्र का अध्ययन करना हो तो उसके वचपन के कार्यों के निरीक्षण से भलीभांति पता लग जाता है। जब हम इस तुला पर अपने चरित्रनायक का वाल्यकाल परखते है तो पता चलता है कि वचपन से ही उनमे विलक्षण सूझ थी। Not का raNA THAT Shabad . . . 4 - 5 लाला तनमुखराय जैन का जन्म पजाब प्रात के रोहतक नगर ने स्व. श्रीमान् लाला जौहरीमलजी जैन को धर्मपरायणा पली श्री भगवतीदेवी की कोख से सन् १८६६ ई० मे हुमा [ २१
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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