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और निश्चित खडे रहे। उनका विश्वास था कि प्रचलता और दृढता के सम्मुख धन और मान स्वय ही आकर अपना शीश झुकायेगे। इसी विचार को सामने रखते हुए और स्वतत्रा के रग मे होने के कारण १०२० मात्र की नौकरी करने में भी सकोच नहीं किया। नौकरी करते समय आप यह नहीं सोचते थे कि मै १० रु० की नौकरी कर रहा हूँ। वल्कि सोचते कि मेरा कर्तव्य क्या है। इसी कारण इन्होने नही, नही, इनके कार्य ने मिल-मालिक पर एक अधिकार-सा कर लिया। वह इन्हें अपने भाई की ही तरह समझने लगा। कुछ दिनो के बाद मिल-मालिक का एक दोस्त उनसे मिलने के लिए आया। और एक विश्वसनीय तथा ईमानदार आदमी की आवश्यकता की इच्छा प्रकट की। फिर क्या था, वडी दृढता वाले विचार सत्यता मे परिणत होना प्रारभ हो गए । और मिल-मालिक के सकेत पर वह मित्र लाला तनसुखराय जन को ८० रु० महीने के वेतन पर अपने साथ ले गया।
__वहा पर अचानक बीमार हो जाने के कारण ही आपको वापिस आना पडा। अच्छा होने पर भी आपकी स्वतत्र प्रवृत्ति न बदल सकी और आपने रवतत्रतापूर्ण ध्यान रखते हुए कमीशन का कार्य प्रारभ कर दिया जिससे आपको लगभग १०० २० महीने की आमदनी होने लगी। इन सब बातो से लोगो को आपकी दृढता, अचलता और स्वतत्रता पर विशेप पार्कषण हो गया।
लालाजी का रुझान नौकरी की मोर न था। उनकी योग्यता का सदुपयोग व्यापारिक लाइन मे ही हो सकता है। परन्तु व्यापार के लिए व्यापारिक अनुभव अर्थशास्त्र की शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक समझकर आपने कई व्यापारिक कम्पनियो मे रहकर कन्वेसर, एकाउन्टेंट, सेक्रेटरी
और मैनेजर आदि भिन्न-भिन्न पदो पर रहकर व्यापारिक क्षेत्रों का गहन अध्ययन किया और अनुभव प्राप्त किया। यह अध्ययन कार्य मन् १९२४ ई० तक चलता रहा । लालाजी की प्रभावशाली मूर्ति प्रत्येक व्यापारी के लिए आकर्षक थी और प्रत्येक उनके ईश्वर-दत्त प्रभावशाली व्यक्तित्व से लाभ उठाना चाहता था। इस प्रकार के व्यक्तियों का सबसे अधिक सदुपयोग करने वाले बीमा व्यवसायी ही होते है। इस बात को प्रत्येक भलीभांति जानता है। और लालाजी के साथ कई बार ऐसा हुआ भी। अपनी-अपनी वीमा कम्पनियो का आकर्षण दिखाकर इन्हे कई कम्पनियो ने अपनी ओर खीचना चाहा। परन्तु वीमा व्यवसाय भी लालाजी को रुचिकर प्रतीत नहीं होता था अत बहुत समय तक इन अवसरो को टालते रहे ।
परन्तु १९२४ ई० मे लालाजी के ज्येष्ठ वहनोई श्रीयुत ला० महेन्द्रसनजी जैन ने जो उस समय भारत बीमा कम्पनी दिल्ली वाच के मैनेजर थे, इन्हें वलपूर्वक इस कार्य की पोर आकर्पित किया। आप भी उनका भाग्रह नही टाल सके, और अनिच्छा होते हुए कार्य प्रारम किया। प्रारभ मे श्रीयुत ला० महेन्द्रसनजी ने आपको बहुत प्रोत्साहन दिया और कुछ ही समय मे इन्हें कई हजार का कार्य मिल गया। धीरे-धीरे झिझक दूर होने लगी और आपका उत्साह वढ़ने लगा। पुण्योदय से थोड़े ही समय मे पापके कार्य की धूम मच गई। और प्रत्येक कम्पनी इन्हे अपनाने के लिए उत्सुक रहने लगी। सम्पूर्ण जिला रोहतक, हिसार तथा जीद स्टेट की २४ ]