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इतना ज्यादा प्यार किया जिसका वयान करना मेरे लिए मुश्किल है। और जिससे में दब गया । मैं आशा करता हूँ कि मैं अपने जीवन के वाकी वर्षो मे अपने देशवासियों की सेवा करता रहूंगा और उनके प्रेम के योग्य सावित होऊँगा ।
वेशुमार दोस्तो और साथियो के मेरे ऊपर और भी ज्यादा अहसान है । हम बडे-बडे कामो मे एक-दूसरे के साथ रहे, शरीक रहे, मिल-जुलकर काम किये। यह तो होता ही है कि जब बड़े काम किए जाते है उनमे कामयात्री भी होती है । नाकामयावी भी होती है। मगर हम सब शरीक रहे - कामयाबी की खुशी मे भी और नाकामयाबी के दुःख मे भी । मै चाहता हूँ धौर सच्चे दिल से चाहता हूँ, कि मेरे मरने के बाद कोई धार्मिक रस्म अदा न की जाय। मैं ऐसी बातो को मानता नही हूँ। और सिर्फ रस्म समझकर उसमे बंघ जाना, घोके मे पडना मानता हूँ। मेरी इच्छा है कि जब मे मर जाऊं तो मेरा दाह सस्कार कर दिया जाए। अगर विदेश मे मरूं तो मेरे शरीर को वही जला दिया जाय, और मेरी अस्थियां इलाहाबाद भेज दी जाएं। उनमे से मुट्ठीभर गंगा मे डाल दी जाएं और उनके बड़े हिस्से के साथ क्या किया जाए, मै धागे बता रहा हू । उनका कुछ हिस्सा किसी हालत मे बचा न रखा जाय ।
गंगा मे अस्थियो का कुछ हिस्सा डलवाने के पीछे, जहां तक मेरा ताल्लुक है कोई धार्मिक ख्याल नही है । मुझे बचपन मे गंगा और जमुना से लगाव रहा है। श्रोर जैसे-जैसे मैं वडा हुआ, यह लगाव वढता ही गया। मैंने मौसमो के बदलने के साथ इनमे बदलते हुए रंग और रूप को देखा है । और कई बार मुझे याद आई उस इतिहास की, उन परम्पराओ की, पौराणिक गाथाओ की, उन गीतो और कहानियो की, जोकि कई युगो से उनके साथ जुड़ गई हैं और उनके बहते हुए पानी मे घुल-मिल गई है।
गगा तो विशेषकर भारत की नदी है । जनता को प्रिय है। जिससे लिपटी हुई है भारत की जातीय स्मृतियां, उसकी प्राशाएँ और उसके भय, उसके विजय गान, उसकी विजय और पराजय । गगा तो भारत की प्राचीन सभ्यता का प्रतीक रही है । निधानी रही है। सदा बदलती सदा वहती फिर वही गंगा की गंगा । वह मुझे याद दिलाती है हिमालय की, बर्फ से ढकी चोटियो की और गहरी घाटियो की जिनसे मुझे मुहब्बत रही है। उनके नीचे उपजाऊ श्रीर दूर-दूर तक फैले मैदानो की जहाँ काम करते मेरी जिन्दगी गुजरी है । मैंने सुबह की रोदानी मे गंगा को मुस्कराते, उछलते-कूदते देखा है । और देखा है शाम के साए में उदास काली-मी चादर ओढे हुए, भेद भरी जाडो मे सिमटी-सी आहिस्ते-आहिस्ते वहती सुन्दर धारा और वरमान
दौड़ती हुई समुद्र की तरह चोडा सोना लिए हुए, और सागर को वरवाद करने की शक्ति लिए हुए, यही गंगा मेरे लिए निशानी है। भारत की प्राचीनता की यादगार जो बहनी हुई वर्तमान तक और वहती चली जा रही है। भविष्य के महासागर की ओर ।
भले हो मैंने पुरानी परम्पराम्रो, रोति और रस्मो को छोड दिया है। और मै चाहना हूँ कि हिन्दुस्तान इन रीति श्रोर रस्मो को तोड़ दे जिनमे वह जकड़ा है। और उसको आगे बढ़ने से रोकती है । और देश मे रहने वालो मे फूट डालती हैं। जो बेशुमार लोगो को दबाये रमती है । और जो शरीर और ग्रात्मा के विकास को रोकती है।
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