________________
मच पर भी उनका कृतित्व अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा है किन्तु इस सब के बावजूद उनके चेहरे पर जवानी की पुरानी रौनक कायम है। और वह सन्तुलन, मर्यादा, ज्ञान, धैर्य और मिलनसारी, जो आन्तरिक सयम र वौद्धिक अनुशासन का परिचय देते है, श्रव भी ज्यो- के त्यो है । निस्सदेह उनका रोष कभी-कभी फूट पडता है, किन्तु उनका प्रधैर्य क्योकि न्याय और कार्य तत्परता के लिए होता है और अन्याय या धीगा धीगी को सहन नही करता, इसलिए ये विस्फोट प्रेरणा देने वाले ही होते हैं और मामलो को तेजी तथा परिश्रम के साथ सुलझाने मे मदद देते है । ये मानो सुरक्षित शक्ति है, जिनकी कुक से आलस्य, दीर्घसूत्रता और लगन या तत्परता की कमी पर विजय प्राप्त हो जाती है । आयु मे वडे होने के नाते मुझे कई बार उन्हे उन समस्याओ पर परामर्श देने का सोभाग्य प्राप्त हुआ है, जो शासन प्रबन्ध या सगठन क्षेत्र मे हम दोनो के सामने आती रही है । मैंने उन्हे सदैव सलाह लेने को तत्पर और मानने को राजी पाया है। कुछ स्वार्थ-प्रेरित लोगो ने हमारे विषय में भ्रान्तिया फैलाने का यत्न किया है और कुछ भोले व्यक्ति उन पर विश्वास भी कर लेते है, किन्तु वास्तव मे हम लोग याजीवन सहकारियो और बन्धुप्रो की भाति साथ काम करते रहे है । अवसर की माग के अनुसार हमने परस्पर एक-दूसरे के दृष्टिकोण के अनुसार अपने को वदला है और एक-दूसरे के मतामत का सर्वदा सम्मान किया है, जैसा कि गहरा विश्वास होने पर ही किया जा सकता है। उनके मनोभाव युवकोचित उत्साह से लेकर प्रौढ गम्भीरता तक बराबर बदलते रहते है । और उनमे वह मानसिक लचीलापन है, जो दूसरो को भेल भी लेता है और निरुत्तर भी कर देता है । क्रीडारत बच्चो मे और विचार सलग्न वूढो में जवाहरलाल समान भाव से भागी हो जाते है । यह लचीलापन और वहुमुखता ही उनके अजस्र यौवन का, उनकी अद्भुत स्फूर्ति और ताजगी का रहस्य है ।
उनके महान् और उज्ज्वल व्यक्तित्व के साथ इन थोडे से शब्दो में न्याय नही किया जा सकता । उनके चरित्र श्रीर कृतित्व का बहुमुखी प्रसार अकन से परे है। उनके विचारो मे कभी-कभी वह गहराई होती है, जिसका तल न मिले, किन्तु उनके नीचे सवंदा एक निर्मल पारदर्शी खरापन और यौवन की तेजस्विता रहती है और इन गुणो के कारण सर्वमान्य, जाति, धर्म, देश की सीमाएँ पार कर, उनसे स्नेह करती है ।
X
X
X
X
नेहरूजी की राष्ट्र को सौंपी गई आखिरी वसीयत, जो उन्होने २१ जून १९५४ को fear थी और जिसको निधन के बाद ३ जून, १९६४ को प्रसारित किया गया ।
श्राखिरी वसीयत
मुझे, मेरे देश की जनता ने मेरे हिन्दुस्तानी भाइयो और बहनो ने इतना प्रेम और इतनी मुहब्बत दी है कि मैं चाहे जितना कुछ करूं, वह उसके एक छोटे से हिस्से का भी बदला नही हो सकता । सच तो यह है कि प्रेम इतनी कीमती चीज है कि इसके बदले कुछ देना मुमकिन नही । इस दुनिया मे बहुत से लोग है जिनको अच्छा समझकर, वडा मानकर पूजा गया, लेकिन भारत के लोगो ने छोटे और बडे, अमीर और गरीब सव तवको के वहिनो और भाइयो ने मुझे
३५४ ]