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________________ चाहे यह सब मैं चाहता हूँ। फिर भी मैं यह नहीं चाहता में अपने को इन पुरानी बातो से बिलकुल अलग कर लू । मुझे फल है इस शानदार उत्तराधिकार का-इस विरासत का जो हमारी रही है और हमारी है। और मुझे यह भी अच्छी तरह से मालूम है कि मैं भी इन सबो की तरह इस जजीर की एक कड़ी हूँ । जोकि कभी नही और कही नही टूटी। और जिसका सिलसिला हिन्दुस्तान के अतीत के इतिहास के प्रारम्भ से चला आता है। यह सिलसिला मैं कभी नही तोड़ सकता क्योकि मै उसकी बेहद कद्र करता हूँ। और इससे मुझे प्रेरणा, हिम्मत, हौसला मिलता है । मेरी इस आकाक्षा की पुष्टि के लिए, भारत की संस्कृति को श्रद्धाजलि भेट करने के लिए मै यह दरख्वास्त करता हूँ कि मेरी भस्म की एक मुट्ठी इलाहाबाद के पास गगा मे डाल दी जाय जिससे कि वह महासागर में पहुंचे, जो हिन्दुस्तान को घेरे हुए है। मेरे भस्म के बाकी हिस्से को क्या किया जाय ? मैं चाहता हूँ कि इसे हवाई जहाज में ऊचाई पर ले जाकर बिखेर दिया जाय, उन खेतो पर जहा भारत के किसान मेहनत करते है। ताकि वह भारत की मिट्टी में मिल जाय और उसी का अग बन जाय । + + + जयन्ती के जलूस का श्रेय श्री आदीश्वरप्रसाद जैन M. A. मन्त्री त्री, जैनामिमण्डल धर्मपुरा, दिल्ली। लाला तनसुखराय जी स्थानीय समाज के ही नही भारतीय जैन समाज मे एक आदर्श गौरव स्वरूप सफल कार्यकर्ता थे। सर्वप्रथम जैन मित्र-मण्डल की कमेटी ने जलूस निकालने का निश्चय किया तो लाला जी ने आगे आकर अपने तत्वावधान मे जलूस का नेतृत्व किया। यह कहते हुए बडा हर्ष होता है कि प्राज महावीर जयन्ती का जलूस जैन समाज के जलूसो मे एक आदर्श और महत्वपूर्ण है जिसका श्रेय लाला तनसुखराय जी को है। मैं उनके प्रति श्रद्धाजलि अर्पित करता हूँ। __ + + +
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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