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जीव के अनादि स्वरूप का तथा योग्य विवेचन नहीं है, जिसमे कर्मवन्ध की व्यवस्था और उसकी निवृत्ति भी जैसी चाहिए वैसी नही कही, उस धर्म का मेरे अभिप्राय के अनुसार सर्वोत्तम धर्म होना सम्भव नहीं है । खिस्ती धर्म मे जैसा मैंने ऊपर कहा, उस प्रकार जैसा चाहिए वैसा समाधान देखने में नहीं आता। इस वाक्य को मैने मतभेद के वश होकर नही लिखा अधिक पूछने योग्य मालूम हो तो पूछना-तब विशेष समाधान हो सकेगा।
प्रश्न (१४)-वे लोग ऐसा कहते है कि वाइवल ईश्वर-प्रेरित है। ईसा ईश्वर का अवतार है-वह उसका पुत्र है और था।
उत्तर -यह बात तो श्रद्धा से ही मान्य हो सकती है, परन्तु यह प्रमाण से सिद्ध नही होती। जो बात गीत और वेद के ईश्वर कर्तृत्व के विषय मे लिखी है, वही बात बाइबल के सम्बन्ध मे भी समझना चाहिए। जो जन्म-मरण से मुक्त हो, वह ईश्वर अवतार ले, यह सम्भव नही है । क्योकि राग-द्वेष आदि परिणाम ही जन्म के हेतु है, ये जिसके नही है, ऐसा ईश्वर का अवतार धारण करे, यह बात विचारने से यथार्थ नही मालूम होती। 'वह ईश्वर का पुत्र है और था' इस वात को भी यदि किसी रूपक के तौर पर विचार करे तो ही यह कदाचित ठीक बैठ सकती है, नही तो यह प्रत्यक्ष प्रमाण से वाषित है। मुक्त ईश्वर के पुत्र हो, यह किस तरह माना जा सकता है और यदि मानें भी तो उसकी उत्पत्ति किस प्रकार स्वीकर कर सकते है? और यदि दोनो को अनादि मानें तो उनका पिता-पुत्र सम्बन्ध किस तरह ठीक वैठ सकता है ? इत्यादि वात विचारणीय है जिनके विचार करने से मुझे ऐसा लगता है कि वह वात यथायोग्य नही मालूम हो सकती।
प्रश्न (१५)-पुराने करार मे जो भविष्य कहा गया है, क्या वह ईसा के विषय मे ठीक-ठीक उतरा है।
उत्तर-यदि ऐसा हो तो भी उससे उन दोनो शास्त्री के विषय में विचार करना योग्य है तथा इस प्रकार का भविष्य भी ईसा को ईश्वरावतार कहने मे प्रवल प्रमाण नहीं है, क्योकि ज्योतिष आदि से भी महात्मा की उत्पत्ति जानी जा सकती हूँ। अथवा भले ही किसी ज्ञान से वह वात कही हो, परन्तु वह भविष्यवेत्ता सम्पूर्ण मोक्ष-मार्ग का जानने वाला था यह बात जब तक ठीक-ठीक प्रमाणभूत न हो, तव तक वह भविष्य वगैरह केवल एक श्रद्धा-पाह्य प्रमाण ही है, और वह दूसरे प्रमाणो से वाधित न हो, यह बुद्धि मे नही पा सकता।
प्रश्न (१६)-इस प्रश्न मे 'ईसामसीह के चमत्कार के विषय मे लिखा है ।
उत्तर -जो जीव काया मे से सर्वथा निकलकर चला गया है, उसी जीव को यदि उसी काया मे दाखिल किया गया हो अथवा यदि दूसरे जीव को उसी काया में दाखिल किया गया हो तो यह होना सम्भव नही है, और यदि ऐसा हो तो फिर कर्म आदि की व्यवस्था भी निष्फल ही हो जाय । बाकी योग आदि की सिद्धि से बहुत से चमत्कार उत्पन्न होते हैं। और उस प्रकार के बहुत से चमत्कार ईसा के हुए हो सो यह सर्वथा मिथ्या है, अथवा असम्भव है ऐसा
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