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किया । वीरगाथा -काल में भी पृथ्वीराज को उल्लास दिखाने वाले महाकवि चन्दरबरदाई, मध्यकाल
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में गोस्वामी तुलसीदास तथा अन्त मे महाकवि भूषण की देश की एकता की भावना सबसे अधिक मुखरित हुई है । चन्दरबरदाई ने अनेक स्थानो पर "पृथ्वीराज रासो" में हिन्दुस्तान का उल्लेब कर उसकी एकता जागृत की है।
"विनयपत्रिका" और "कवितावली" में तो स्पष्ट रूप से उन्होने भारत भूमि मे जन्म होने का अभिमान प्रगट किया है—
गो० तुलसीदासजी ने रामचरितमानस मे जन्मभूमि की महिमा का वर्णन किया है :जन्म भूमि मम पुरी सुहावनि । उत्तर दिशि सरयू वह पावनि ॥ अति प्रिय मोहिं यहा के वासी । मम धामदा पुरी सुखरासी ॥
यह भारत खड पुनीत सुरसरि थल भलो तेरी कुमति काचर कल्प बल्ली चहति है विष
( विनय पत्रिका )
भक्ति भारत भूमि भले कुलजन्म समाज शरीर भलो लहिके । आदि ( कवितावली )
सगति भली । कल फली ॥
इस प्रकार भूषण ने हिन्दू धर्म और हिन्दुस्तान का उल्लेख कर शिवाजी को उत्साह . दिलाया था । सत कवियो को देश की एकता का बोध तो उतना नही था जितना कि उसमे निवास करने वाले जातियो और धर्मों की एकता का बोध था । कबीरदास और नानक आदि कवियो ने ant की एकता के लिए बहुत बडा काम किया। गुरु नानक ने एक स्थान पर कहा है
हिन्दू तुरुक कहां ते आए दिल महि सोच विचार कवादे दादूदयाल ने एकता का प्रतिपादन करते हुए कहा है---
दूनो भाई नैन हैं दूनो भाई कान । दूनो भाई बैन हैं हिन्दू मुसलमान ॥
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कबीरदास ने तो एक ईश्वर की एकता के आधार पर सव वर्णों और जातियो की एकता स्थापित की -
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किनि एह राम चलाई । भिसक दोजख किति पाई ||
अग्रेजी राज्य की स्थापना से हमारे देश की पराधीनता पूर्ण हुई किन्तु देश एक राजछत्र के अन्तर्गत प्राया । विदेशी राज्य के साथ विदेशी राष्ट्रीयता भी हमारे देश में भाई और उससे प्रेरित होकर हमारे नेताओ ने विदेशी राज्य के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ किये । इनके साथ ही अपने देश की दुर्दशा पर कवियो का ध्यान आकर्षित हुआ । भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने सबसे पहले भारत की दुर्दशा पर आसू बहाये
एक देव एक मल मूतर एक चाप एक गूदा । एक ज्योति ते सब जग उपजा को बाह्मन को सूदा ||