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गायन्ति देवा किल गीतकानि धन्याऽस्तुते भारत भूमिभागे।
इसी प्रकार महाभारत में भी भारत भूमि का उल्लेख आया है। उत्तर में हिमालय और पूर्व-पश्चिम मे समुद्रो से घिरी हुई भारत भूमि की कल्पना बहुत पहले से एकता की भावना की पुष्टि करती आ रही है। पुराणो में जिन सम्राटो का वर्णन है वे हिमालय से लेकर सिन्धु तट तक दिग्विजय करके समस्त भारत पर अपना राज्य स्थापित करते थे। कालिदास ने भी ऐसे सम्राटो का वर्णन किया है जोकि समुद्र तक पृथ्वी पर राज्य करते थे -
आ समुद्र क्षितीसता रघूणाम् रघुवश । - वैसे वेदो में भी राजसूय यज्ञ के अवसर पर यही कामना की जाती है कि हम हिमालय से लेकर समुद्र पर्यन्त पृथ्वी के एकछत्र सम्राट् है । इस प्रकार समग्र देश की एक ही भावना की परम्परा बहुत प्राचीन काल से हमारे धर्म की अगभूत होकर चली आती है। हम भारत की किसी भी नदी में स्नान करें किन्तु भारत की सभी प्रमुख नदियो का नाम स्मरण कर उन सवका जल उसमे सम्मिलित किया जाता है और एक मन्त्र पढा जाता है -
गगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वती ।
नर्मदेसिंधु कावेरी चले स्मिन् सन्निधिम कुरु ।। ___ इसी प्रकार देश के सप्त पर्वतो और सप्त महापुरियो का स्मरण किया जाता हैअयोध्या, मथुरा, माया, काशी, काञ्ची, भवन्तिका। यह प्रथा भी हमारी राष्ट्रीय एकता को सिद्ध. करती है कि राज्याभिषेक के समय भारत की समो पवित्र नदियो का जल मगाफर उनसे राजा का अभिषेक किया जाता था। महाभारत और रामायण में उल्लेख है कि रामचन्द्रजी के तथा युधिष्ठिर के अभिषेक के लिये सभी पवित्र नदियो का जल मगाया गया था। उस समय समस्त भारत के राजामो को निमत्रित किया गया था
प्राच्येदीच्या प्रतीच्याश्च दाक्षिणत्माश्च भूमिपा । त्मेच्छाश्चायश्चिये चान्ये वन शैल निवासिन ।
(रामायण, अयोध्या० ३-२५) इसका उल्लेख रामचरितमानस में भी पाया है कि जब चित्रकूट मे रामचन्द्रजी ने राज्य स्वीकार नहीं किया तब भरतजी ने पूछा कि उस जल का क्या किया जावे
देव देव अभिषेक हित गुरु अनुसासनु पाइ।
आनेउ सब तीरथ सलिलु तेहि कह काह रजाइ । गुरु की आज्ञा से वह जल कूप मे रखा गयाभरत कूप अब कहिहहिं लोगा। अति पावन तीरथ जल जोगा।
मध्यकाल में भारत की एकता खंडित हो कर वह विभिन्न राज्यो मे विभक्त हो गया। उस समय आपसी मतभेद के कारण हमारे देश की एकता छिन्न-भिन्न हो गयी। उस समय भी एकता के उपासक हमारे कवियो ने अपने देश की एकता का वोय कराके उमे फिर से स्थापित