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विश्व का शाकाहार आन्दोलन
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श्री सन्मतिकुमार जैन सत्तर वर्प से भी अधिक समय से मैं शाकाहारी हू । शाकाहार के लाभ के विषय मे | कुछ कहना नहीं चाहता । इसके परिणाम से जनता सुपरिचित हैं ।
-সাল এনভি ব্য। सन् १९१७ मे लन्दन के शाकाहारी समाज के सत्रहवे वार्षिकोत्सव के अवसर पर जार्ज वर्नार्डशा ने अपने सन्देश में कहा था
मुझे अपनी आस्था का श्रेय मिल सका या नही इस सम्बन्ध मे आप अपनी धारणा स्वय निश्चित कीजिएगा । मैं इसे आस्था कहता हू-क्योकि आज हम भौतिकवादी दृष्टि से शिक्षित इस युग मे शरीरविज्ञान पर आधारित जो युक्तियाँ प्रस्तुत करते है उनमें मेरा तनिक भी समादर नही । प्रामाणिक मनोविज्ञान के विकसित होने पर हम अधिशरीर क्रियाविज्ञान तक पहुच सकेंगे और तब हम स्वजाति भक्षण के प्रति नैसर्गिक विद्रोह की विश्वासजनक ढंग से व्याख्या कर सकेंगे।
यदि वचपन मे मुझे अकेला छोड दिया जाता तो मैंने अपने जीवन में कभी भी मास भक्षण न किया होता।
मेरे जैसा आध्यात्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति शव भक्षण नहीं करता। यह वात सर्वथा स्पष्ट है कि मनुष्य शाकाहार से दीर्घायु प्राप्त कर सकता है।
लन्दन के सुप्रसिद्ध नाट्यकार वर्नार्ड शा जीवन भर शाकाहारी रहे । उन्होने अपने जीवन मे कभी भी मास, मछली, अन्डे को स्वीकार नही किया । एक बार वे किसी भोज में आमन्त्रित थे। उनके भोजन में शाकाहार का ही प्रवध किया गया था । किसी व्यक्ति ने उनके सामने मासाहार का भोजन परोसना चाहा तो उन्होने तत्काल मना कर दिया और कहा मैं अपने शरीर को कवस्तान नहीं बनाना चाहता हू । प्रकृति ने अन्न, फल, मेवा, दूध आदि सर्वोत्तम पदार्थ उत्पन्न किए है, मैं इन्हे छोड़कर मांसाहार कदापि नही कर सकता । दीर्घायु, निरोग शरीर, थात स्वभाव, कर्तव्यशील प्रकृति, हसमुख वदन और सात्विक विचार जो मेरे अन्दर आये है उसका प्रमुख कारण शाकाहार है। मै शाकाहार को ही जीवन के लिए पावश्यक समझताहूं। विश्ववन्ध महात्मा गांधीजी ने अपने जीवन में कभी भी मासाहार नही किया। उन्होंने अपनी माताजी के समक्ष जैन साधु बेचर स्वामी से तीन प्रतिज्ञाये ली। मांस, मदिरा और पर-स्त्री सेवन का त्याग। इन प्रतिज्ञापो के कारण उनका जीवन अहिंसा सस्कृति से ओतप्रोत हो गया । वे जब वैरिस्टरी के शिक्षण के लिए विलायत गए तो शाकाहारी आन्दोलन में उन्होने विशेप रुचि दिखाई। विदेशो के वयोवृद्ध शाकाहारी विद्वानो के बीच मै नवयुवक गांधीजी अध्यक्षता करते थे और उनका शाकाहार के कारण विगेप सम्मान था । उस समय लन्दन मे कई गाकाहारी सस्थानो की नीव रखी गई। गाकाहार
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