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आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। एक बार गाधीजी के बड़े पुत्र बीमार हुए । डाक्टरों ने उन्हे मन्डे का शोरवा देने का प्रस्ताव किया । गाबीजी ने कहा मैं कदापि अपने पुत्र को भडे का शोरवा नही दूगा। उनसे किसी ने कहा गाय का दूध उसके बच्चे का आहार है होने तत्काल दूध का त्याग कर दिया । जब उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा तो उनसे कहा गया कि पाप बकरी का दूध प्रयोग में लाइए । उन्होने बकरी के दूध को स्वीकार कर लिया । गाधीजी अहिंसा के अवतार थे। उन्होने अहिसा प्रचार के कार्य मे अनुपम कार्य किये। सात्विक आहार-विहार पर वे अधिक जोर देते थे। भारतवर्ष की सस्कृति और सभ्यता धर्मप्रधान रही है । धर्म में अहिंसा को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसलिए कहा है :
धम्मो मगल मुक्किट, अहिसा सयमी तपो,
देवापि तस्स णम स्यति, जस्य धम्मे सयामणे । ' धर्म लोक मे उत्कृष्ट मगल है । और वह अहिंसा सयम और तप है। देवता भी उसको प्रणाम करते है जिसके हृदय मे हिसा का वास है।
भारतवर्ष मे धर्म की बड़ी प्रधान थी। सभी मनुष्यो का आहार-विहार साविक था। जब से विदेशियो का भारत मे पाना हुआ यहा मासाहार बढ गया। सात सौ वर्ष मुसलमानो के रहने से और दो सौ वर्ष अग्रेजो के रहने से भारतीयता का रूप-रग बदल गया। पाश्चात्य सस्कृति का इतना अत्यधिक असर हुआ कि आज भारत सरकार मासाहार के लिए बड़ा प्रयल कर रही है । करोड़ो रुपयो की लागत से नए-नए कसाईखाने स्थापित कर रही है।
मुर्गी पालन को प्रोत्साहन देकर अनेक स्थानो पर विशाल केन्द्र स्थापित किए जा रहे है। भारत से करोड़ो रुपये के प्रतिवर्ष चमडे और पशुओ के शरीर के विभिन्न अग विदेशो में भेजे जा रहे है । ऐसी परिस्थिति मे कोई भी विवेकी भारत सरकार को अहिंसा सस्कृति पर विश्वास करने वाला नहीं मान सकता । आवश्यकता है, देश में पशुधन की वृद्धि की जाय और सघन खेती को प्रोत्साहन दिया जाय तभी अन्न की समस्या सुलझ सकती है ।
__शाकाहार स्वास्थ्य के लिए अत्यत लाभदायक है। यह देखकर विदेशी विद्वानो, डाक्टरो और दूसरे विचारको ने अनुभव किया कि मासाहार तामस और अनेक रोगो को उत्पन्न करने वाला है। क्यो न जीवन मे शाकाहार को प्रोत्साहन दिया जाय । उन्होने इसका अनुभव किया और स्वय शाकाहारी रहने का वृढ सकल्प किया । उन्होंने इस सम्बन्ध में शाकाहारी सोसायटिया स्थापित की और इस प्रकार का साहित्य निर्माण किया जिसके पढने से स्पष्ट प्रकट होता है, शाकाहार जीवन को शक्ति, बल और कर्तव्य की ओर प्रेरित करता है। प्रकार पाश्चात्य देशो मे अनेक Vegetarian Society कायम हुई । फलस्वरूप शाकाहार का प्रचार किया। ससार के कोने-कोने मे ऐसी सोसाइटियाँ है जो अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रचार के विविध साधनों द्वारा प्रचार करती है। ऐसी सोसायटियो मे लन्दन और मैनचेस्टर की प्रसिद्ध सोसायटिया है जो बहुत प्राचीन है । विविध रीति से शाकाहार का विश्व मे प्रचार करती है। प्राणी-रक्षा के सम्बन्ध में प्रयत्न करती है। २९८ ]