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मै बोला, मे भूला था, तब नही मुझे था ज्ञान; नीच - ऊंच भाई-भाई है भारत की सन्तान ।
होगा दोनो विना न दोनों का कुछ भी विस्तार, अव न करूंगा उनसे कोई कभी बुरा व्यवहार ॥ ७ ॥
वे बोले यह सुमति आपकी करे हिन्द का त्राण, उनके हिन्दू रहने मे है भारत का कल्याण ।
उनका प्रव न निरादर करना, बनना भ्रात, उदार, भेदभाव मत रखना उनसे करना मन से प्यार ॥ ८ ॥
क्रान्ति-पथे
तोडो मृदुल वल्लकी के ये सिसक-सिसक रोते से तार, दूर करो सगीत कुण्ड से कृत्रिम फूलो का गार
भूलो कोमल, स्फीत-स्नेह-स्वर भूलो क्रीडा का व्यापार, हृदय-पटल से आज मिटा दो स्मृतियो का अभिनय आगार ।
भैरव शखनाद की गूज फिर-फिर वीरोचित ललकार, मुरझाए हृदयो मे फिर से उठे गगन भेदी हुकार ।
धधक उठे अन्तस्तल मे फिर क्रान्ति गोतिका की झकारविह्वल, विकल, विवश पागल हो नाच उठे उन्मद ससार ।
दीप्त हो उठे उरस्थली मे भाशा की ज्वाला साकार, नस-नस में उद्दण्ड हो उठे नवयोवन रस का सचार |
तोडो वाद्य, छोड दो गायन, तज दो सकरुण हाहाकार, प्रागे है अव युद्ध क्षेत्र- फिर, उसके आगे कारागार ।
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व्रती समाज की कल्पना जितनी दुरुह है, उतनी व्रत ही नही लेता, पहले वह विवेक को जगाता है। कठिनाइया झेलने की क्षमता पैदा करता है। प्रवाह के फिर वह व्रत लेता है ।
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सी सुखद है। व्रत लेने वाला कोरा श्रद्धा और सकल्प को दृढ़ करता है । प्रतिकूल चलने का साहस लाता है;
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