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साज़-हस्ती
हस आया है फकत दो-चार दाने के लिए। बागे पालम मे हवा दो दिन की खाने के लिए ॥१॥
है श्री जिनराज की बानी सुनाने के लिए। याद कर लो शौक से तुम इसको गाने के लिए ॥२॥
जैनियो के दिल में होगा जव कही पैदा सरूर' । साजेहस्ती२ चाहिए कौमी तराने के लिए ॥३॥
दूर हो जिससे स्याहवस्ती हमारी कौम की। हाथ मे हो ज्ञान की मशाल जलाने के लिए ॥४॥
राजनीति का सबक भी सीख लो ऐ जैनियो। जग में अपना कदम आगे बढाने के लिए ॥५॥
पाए है क्या इसलिए दुनिया मे हम ऐ दोस्तो। खुबार होने ठोकरें गैरो की खाने के लिए ॥६॥
जीव हो जाएगा कालिव से जुदा जब देखना। लाश ही रह जाएगी वाकी जलाने के लिए ॥७॥
न्यामते दुनिया खिलाते थे जो पौरो को कभी। दर-बदर फिरते है अब वह दाने-दाने के लिए ॥८॥
चादरे गुलम् पै जिन्हे मुश्किल से कल आती थी नीद । ढूढते है ईट वो तकिया लगाने के लिए ॥६॥
मिस्ले महमा 'दास' इस दुनिया मे रहना चाहिए। तू जो पाया है यहा आया है जाने के लिए ॥१०॥
१ नशा २दिल का साज ३ जातिय ज्ञान ४ बदनसीबी ५ मशाल ६ शरीर ७ दुनिया. मच्छी वस्तु फूलो की सेज ।