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स्मृति-चिह्न स्वरूप बहुत से खडहर और अन्य यादगारें विखरे हुए मिलते है । इनमे इन यात्रामो और वहा अजित यश और कीर्ति और साथ ही धन-सम्पदा उन सबका पता मिलता है।
मध्यकाल में देश के गौरव की चार-चाद लगाने वाले हेमू बनिए और भामागाह के नाम से कौन परिचित नहीं । उनकी स्मृति इतिहाम के पन्नो मे स्वर्णाक्षरो मे अकित है।
पतन का काल
किन्तु वैश्य वर्ग की यह स्थिति और गौरव सदैव इस रूप मे वने नहीं रहे। जब तक वैश्य समाज मे साहस और पराक्रम बना रहा, वह फलता-फूलता रहा और देश का दृढ आधार सिद्ध हुआ । किन्तु उसमे धीरे-धीरे शिथिलता आने लगी। इसका स्पष्ट चिह्न विदेश यात्रा पर लगने वाले प्रतिबध थे। फलस्वरूप वैश्य वर्ग की सम्पदा मर्जन करने की अपूर्व क्षमता समाप्त हो गयी । साहसपूर्ण कार्यों को सम्पन्न करने की उसकी वृत्ति पर रोक लग गई । यात्रामो के अभाव मे परिवहन व्यवस्था को अपने नियन्त्रण से रखकर उसमे निरन्तर सुधार करने की आवश्यकता नही रह गयी । फलस्वरूप इसके संगठित रूप का अन्त हो गया। विदेशी सम्पर्क के अभाव में ससार की व्यापारिक स्थिति मे होने वाले सामयिक परिवर्तनो का कोई ज्ञान वैश्य वर्ग को नही रहा । फलस्वरूप नये-नये समयानुकूल धन्धो और कला-कौशलो का प्रारभ नहीं किया जा सका। साथ ही पुरानो को नया रूप देना भी सभावित नहीं रहा । इस स्थिति के फलस्वरूप जिन कार्यों ने पहले काफी धन मिलता था, वे हानि अथवा कम लाभ के बन गये।
इन सब बातो का परिणाम यह हुआ कि वैश्य समाज ऐसे कार्यों मे सलग्न हो गया, जो अपेक्षाकृत कम जोखिम भरे थे। जमीदारी, साहूकारी और दलाली जैसे कुछ धन्धो तक ही उसने अपने आपको सीमित कर लिया । वृटिश शासनकाल मे यही स्थिति वैश्य समाज की थी। भारतीय समाज के लिए भी वैश्य वर्ग के पतन का यह काल गुलामी का काल सिद्ध हुआ। वैव्य वर्ग की गिरावट से सारे समाज के छिन्न-भिन्न हो जाने की बात उक्त उदाहरण से अधिक अन्य किसी बात से सप्ट नहीं होती। हमारी वर्तमान स्थिति
हमारी वर्तमान स्थिति और भी अधिक खराब है। देश के आजाद होने के बाद से ऊपर गिनाये रहे-सहे कार्य भी वैश्य समाज के हाथ से निकलते जा रहे हैं। कानून बनाकर जमीदारी की प्रथा समाप्त कर दी गई । ऋण देने की विविध प्रकार की राजकीय व्यवस्थाये अब तक की जा चुकी है । इनके फलस्वरूप साहूकारी का धन्वा भी लगभग समाप्त हो गया है । दलाली के बहुत से काम समाप्त हो चुके है । जो शेप है, उन पर भी नियन्त्रण लगा रहे है । इस प्रकार वैश्य समाज की स्थिति अब लगभग शोचनीय और दयनीय बन गयी है।
___ इसमे सन्देह नहीं कि हमारे समाज का यह चित्र काफी डरावना है। फिर भी इमे ऐसा नही स्वीकार किया जा सकता कि इससे हमारे साहस की समाप्ति होकर पूर्ण निराशा फैल
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