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तक सारे मसार पर राज्य करता रहा । वृटिंग साम्राज्य का उस काल मे इतना अधिक विस्तार था कि उसके बारे में यह बात कही जाती थी कि बृटिश साम्राज्य मे मूर्य कभी नहीं छिपता । सातो समुद्रो पर उसका गामन था । ब्रिटिश भक्ति के इस विस्तार का वास्तविक कारण उसका वणिक समाज अर्थात् वैश्य वर्ग ही था । माज ब्रिटेन की वह शक्ति नही रही, फिर भी "मेड इन इगलड" (डगलैंड में तैयार) इस शब्द का चमत्कार पूर्णतया नष्ट नहीं हुआ है । मोटे से और सर्वथा पिछड़े जापान को ५० वर्ष मे भी कम समय में पूरव का उगता हुआ सूर्य विशेपण प्रदान करने वाला कौन था। निश्चित रूप में इसका श्रेय जापान के वैश्य वर्ग को प्राप्त है । अल्पसमय में अमाधारण उन्नति कर उन्होने जापान को इतना समर्थ बना दिया कि एक ओर तो वह जर्मनी, इगलंड आदि देशों की व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को झेलने योग्य हो गया, दूसरी ओर स्स से टक्कर लेकर वह उसके दांत खट्टे कर सका । जापानी वैश्य वर्ग का यह चमत्कार था, जिसने उस पिछड़े हुए और पराजित देश की काया पलट दी । अाज ससार में सयुक्त राज्य अमरीका को प्रथम स्थान प्राप्त है । कौन नहीं जानता कि उसे यह पद दिलाने का श्रेय किसको है । अपनी प्रत्येक आवश्यकता के लिए ब्रिटेन पर निर्भर रहने वाले इस पिछड़े हुए महाद्वीप को सौ वर्ष के कठोर परिश्रम के उपरान्त अमरीकी व्यापारिक वर्ग ने मसार में सबसे अग्रणी बना दिया है। आज मसार में सबसे अधिक उत्पादन इसी देश का है । अमरीकी व्यापारिक वर्ग इस स्थिति से संतुष्ट नहीं। अपने उत्सादन में और भी अधिक वृद्धि करने का उसका प्रयत्न चालू है।
हेमू और भामाशाह
वर्तमान युग के वन्य वर्ग की चमत्कारिक सफलताओं की कुछ झलकिया ये है। यदि हम अपने इतिहास की खोज करं, तो हमे अपने वन्य वर्ग की असाधारण देनो से पूर्ण अनेक कहानिया इतिहास के पन्नो मे छिपी हुई मिल जायेगी। भारतवर्ष को 'सोने की चिडिया' विशेषण किमने दिलाया था । नाना प्रकार की सामग्री ढो-ढोकर देश-विदेश की यात्रा करने वाले परिणक पुत्री के परिश्रम का ही यह परिणाम था। अपनी मेहनत से इन लोगो ने इतनी धन-सपदा अजित की कि इस देश का भडार लवालब भर गया। देश की यात्रा करने वाले विदेशियों की आँख इस धन को चमक से चौविया गयी और उन्होंने इस देश का यह नाम रख दिया।
अपने प्राचीन इतिहास की खोज करने पर हमे ऐसे अनेक युगो का परिचय मिल सकेगा जिनमे इस देश के व्यापारिक वर्ग ने दूर-दूर विदेशों में इस क्षेत्र का नाम उज्ज्वल किया। कई सहस्र वर्ष पूर्व भारतीय वस्त्रो की विक्री करने वाले व्यापारी मिन्न और उससे भी दूर के देशों में पहुँचे । भारतीय वस्त्र कला के नमूने प्रस्तुत कर उन्होंने भारत का नाम इन देशो मे चमकाया देश का कोप भरने के लिए ये लोग अपने साय विपुल सम्पदा भी लाए।
इसके बाद के युगों में भी विदेशों में वैश्य वर्ग का सम्बन्ध इसी प्रकार बना रहा । पूर्व मे बहुत दूर समुद्रो की वणिक पुत्री ने यात्राय की । इनके पूर्ण विवरण यद्यपि उपलब्ध नहीं और उनकी खोज का काम अप है, फिर भी जिन देशो में ये लोग गये वहा प्राप्त की गई सफलतामो के १७]