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________________ जाए । वर्तमान स्थिति जो केवल हमे सजग और मावधान करती है। यदि वैश्य वर्ग ने अपनी गिथिलता का परित्याग नहीं किया तो निश्चय ही उसका विनाश और समाप्ति हो जाएगी। किन्तु इसके विपरीत यदि उसने अपनी चिर-निद्रा से जागकर साहस और उद्यम से भरा अपना पूर्व रूप धारण कर लिया, तो बहुत शीघ्र ही वह सारे ससार पर उसी तरह छा जाएगा जैसे कि ४ हजार या इससे भी अधिक समय पूर्व में लेकर प्राज से लगभग २ हजार वर्ष पूर्व तक वह मारी पृथ्वी पर छाया हुआ था । आवश्यकता केवल साहम और मूझ-बूझ से काम लेने की है। यह कोई कोरी कल्पना नही । जिन थोडे मे भाइयो ने इन गुणो का परिचय दिया है, वे देश-विदेश में प्राणिक रूप मे अपनी कीति-ध्वजा फहराने में सफल हो चुके है। उनकी छोटीछोटी सफलताओ से हम भविष्य की महान झाकी का अनुमान आज भी लगा सकते है। अपने भविष्य का पूर्णरूपेण निर्माण हमारे अपने प्रयलो पर निर्भर.करता है । उत्तरदायित्व की महामता हमारे प्रयलो की पूर्ण सफलता के लिए तीन बातों की जानकारी हमारे लिए आवश्यक है :-(१) वैश्य वर्ग का प्राचीन गौरव, (२) ममाज की रचना मे वैश्य वर्ग का महत्व और (३) वैश्य वर्ग के उत्तरदायित्व की महानता । प्रथम दो बातें जहा हमारे साहस और सूझ-बूझ को उकसाकर हमे आगे बढाने वाली है, वहा वैश्य वर्ग के उत्तरदायित्व की जानकारी हमे सही मार्ग पर अग्रसर होने में सहायक है। महत्व ज्यो-ज्यो वढता जाता है, उसके साथ ही व्यक्ति का उत्तरवायित्व भी अधिकाधिक होता चला जाता है। यदि इनका संतुलन बना रहे अर्थान् वढते हुए महत्व के साथ उत्तरदायित्व की भावना की वृद्धि न हो, तो कोई भी व्यक्ति वर्ग अथवा समाज उन्नति नही कर सकता। आज जवकि वैश्य समाज नई दिशा की खोज मे सलग्न है, जवकि वह अग्रसर होने की वात सोच रहा है, उसमे उत्तरदायित्व की इस भावना का विकास भी आवश्यक है । व्यापार-कार्य सकट और जोखिम से पूर्ण कार्य है। वह अत्यधिक साहस और मूझ-बूझ की माग करता है। कोई भी व्यक्ति मरल मार्ग को अपनाकर इस धन्धे में लाभ नहीं कमा सकता । केवल तत्काल लाभ पर दृष्टि रखने से हमारा कार्य व्यापार मे नही चल सकता । सफल व्यापारी भविष्य और दूर भविष्य सभी पर नजर रखता है और उसका आचरण उसके अनुसार होता है । सभी दया मे वह देश-विदेश मे कीर्ति और सम्पदा का उपार्जन कर सकता है। ऐशी दशा में हमारा वर्तमान नारा 'मेड इन इडिया' (भारत मे निर्मित) की साख को इस देश और विदेशो मे पुष्ट करना है। यदि हम इस कार्य मे सफल हो गए, तो शीघ्र ही ससार की मण्डियो मे हमारी तूती वजने लगेगी। इसके फलस्वरूप स्वय हमारा समाज और देश दोनो नव-स्फूर्ति प्राप्त कर अधिकाधिक दृढ होते चले जाएगे। १८० ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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