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से लोक प्रचलित हो गया है, एक धर्मपरम्परा विशेष के अनुयायी ही है और उनका धर्म हिन्दूधर्म है । हिन्दू और भारतीय- दोनो शव्द पर्यायवाची नही है। -कम कम भारत के भीतर नही है, भारत के बाहर तो भारतीय मुसलमानो को भी कभी-कभी हिन्दू कहा गया है। जिस प्रकार भारत के वौद्ध, सिक्ख, पारसी, ईसाई, मुसलमान, यहूदी, ब्रह्मसमाजी प्रादि भारतीय तो है किन्तु हिन्दू नहीं, उसी प्रकार जैन भी भारतीय तो है, बल्कि जितना भी पूर्णतया कोई अन्य समुदाय किसी भी दृष्टि से भारतीय हो सकता है उसमे कुछ अधिक है, तथापि वे जिन थथों मे आज हिन्दू शब्द रूढ हो गया है उन अर्थों मै हिन्दू नही है । नन्द का जो रूढ और प्रचलित श्रर्थं होता है वही मान्य किया जाता है-- किसी समय 'पाखण्ड' शब्द का अर्थ 'धर्म' होता था, किन्तु आज ढोग, झूठ और फरेव होता है, प्रत यदि आज किसी धर्म को पाखण्ड कह दिया जाय तो भारी उत्पात हो जाय। इस प्रकार के अन्य अनेक उदाहरण दिए जा मकते हैं।
हिन्दू और जैन शब्दो के भी जो अर्थ लोक प्रचलित है जनसाधारण द्वारा समझे जाते हैं, उन्ही की दृष्टि से इस समस्या पर विचार किया जाना उचित है ।
(पृष्ठ १४१ का क्षेप)
रय वडी शान व प्रभावना के साथ सरे बाजार निकाला गया विरोधियों ने भी प्रशसा की ।
सतना का प्रविवेशन भी ला० तनसुत्र राय जी के प्रधान के मंत्रित्वकाल में सफलता से सम्पन्न हुआ । सफलता का विशेष श्रेय प्र० मत्री को तो है ही परन्तु तमाम मी० पी० वरार प्रान्त तथा व्देलखण्ड मे प्रचार सब मैंने ही किया ।
प्रो० हीरालाल जी एम० ए० एल० एल० वी नागपुर अधिवेनन के प्रत्यक्ष सुने गये थे उनका जुलूस १४ बैलो के रथ में निकाला गया । प्रवन्ध कार्य मे प० कमल कुमार और मैने विशेष सहयोग दिया ।
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