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विभिन्न विषयों पर लिखे गए
लाला जी के कतिपय लेखों की झलक
लाला तनसुखराय जी एक कर्मवीर समाजसेवी देशभक्त नेता थे। वे कुशल वक्ता भी थे। नई-नई सूझ आन्दोलन के धनी थे। यद्यपि वे कलम के धनी नहीं थे। वे कुशल नेता थे और न कोई ऐसे विशिष्ट विद्वान थे जो ग्रन्थो का निर्माण करते । परन्तु अपने विचारों को प्रकट करने के लिए वे लिखकर वोलकर जैसा भी अवसर प्राता सदैव तत्पर रहते। वे साहित्यकार तो थे नही न कवि न कोई प्रसिद्ध लेखक । परन्तु जैसे आम कविता मे तीन गुण पाए जाते हैं अक्षर मिताई पद ललिताई और अर्य की गभीरताई। थोडे अक्षर, पदो की सुन्दरता और अर्थ की गभीरता उसी प्रकार सुन्दर गद्य मे भी तीन गुणवृत्त है । लालाजी की रचना मे भी वे सभी गुण पाए जाते है जो एक प्रतिभा सम्पन्न प्रचारक मे होते है । उनकी रचना मे जीवन है, जोश है, प्रवाह और हृदय पर असर करने वाली तेजस्वी विचारधारा है। कतिपय लेखो से इस बात की सत्यता सिद्ध हो सकेगी। यह पाप स्वय अनुभव करेंगे।
रक्षाबन्धन
के सम्बन्ध में हमारा दृष्टिकोण
आज रक्षावन्धन अर्थात् सलोनो का दिन है 1 कोने कोने में राखियो की चहल-पहल दीख पड़ती है । वहिने भाइयो के घरो पर जाकर राखी बाघ कर अपने पवित्र प्रेम का प्रदर्शन करती है। रक्षा-बन्धन की महत्ता के अनेक धार्मिक कारण है। जैन दृष्टिकोण से इसका प्रारम्भ निम्न प्रकार है :-'माज से सहस्रो वर्ष पूर्व उज्जैन नगरी में धर्मप्रेमी राजा श्री वर्मा के वलि आदि चार जैन-धर्म-द्वेषी मन्त्री थे । एक समय नगर मे जव ७०० जैन मुनियो का सघ पाया, तव राजा के साथ दर्शनार्थ जाने वाले वे चारो मन्त्री मुनि श्रुत सागर से वाद-विवाद मे परास्त होकर वदले की इच्छा से लौटे । रात्रि को उन्होने मुनि श्रुतिसागर को मारने की इच्छा की। परन्तु वहाँ के देव द्वारा कीलित किए जाने पर वह हिल भी न सके। प्रान राजा ने यह देख कर क्रोधित हो उन्हे देश निकाला दे दिया। वे ही चारो मन्त्री वाद मे हस्तिनापुर के राजा पद्मराय के यहा भाकर मन्त्री बन गये और राजा को प्रसन्न कर उससे मुह मागी वस्तु पाने का वचन ले लिया। वही मुनि सब कुछ दिनो वाद विहार करते हुए वहाँ भाया । वलि ने राजा से सात दिन के लिए अपने वचनानुसार राज्य लेकर उन मुनियो के चारो ओर हाड, माम, चाम, ई घन आदि की अग्नि जलवा दी, ताकि वह मुनि दम घुट कर मर जावे । मुनि विष्णुकुमारजी पधराय के छोटे भाई भी थे, जिन्हें