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निष्णात | अहिंसा का प्रचार माँसाहारियो को माँस की दुरुपयोगिता सहीरूप से समझाकर मास का त्याग कराना जैसा कठिन कार्य, महावीर जयन्ती पर सार्वजनिक अवकाश दिलाने का प्रयास, वस्त्र औषधि का वाढ पीडितो के लिए निजी व्यय, धार्मिक कार्यो मे पूर्ण श्रभिरुचि, मिलावट विरोधी कान्फ्रेंस (सभा) का सगठन, वाराणसी स्थित भदैनीघाट के शासन की सहायता से कार्य, दिगम्बर जैन कालेज वडोत की उन्नति मे रुचि जैसे अनेक कार्य है जिनमें लाला तनसुखरायजी हृदय से कार्य करते थे तथा उनकी सफलता के लिए दिन-रात व्यस्त रहते थे ।
युवकों के पथ-प्रदर्शक
अखिल भा० दि० जैन परिपद, भारत जैन महामण्डल, वैश्य कान्फ्रेस, अग्रवाल सभा,
प्रेरणा, उत्साह तथा लगन माध्यम से सदैव देते रहते
भारत शाकाहारी परिषद के आप परम हितैषी थे। जैन नवयुवको मे की प्रेरणा आप 'जैन मित्र' आदि पत्रो तथा उपरिलिखित परिपदों के थे । उन्होने अपने ६४ बसन्तो के प्रारम्भिक वसन्त क्रान्तिकारी के रूप में बिताए थे । सत्य को सत्य कहते हुए भी यदि अग्रेजो ने वर्वरता का परिचय दिया तो हमारे स्वतन्त्रता प्रेमी नवयुवक मस्तक ऊँचा ही किए रहे है । उन्ही तरुणो मे लालाजी भी थे ।
महात्मा गाँधी के श्राह्वान मात्र पर भारत के कितने ही युवक असहयोग आन्दोलन सम्मिलित हो गए थे । लालाजी मे धार्मिक सस्कार बाल्यावस्था से ही थे प्रत. धर्म व जाति के नाम पर अत्याचार वे देख नही सकते थे । चावू पर्वत पर टोल टैक्स का वन्द करवाना, दिल्ली स्थित मस्जिद के आगे से जुलूस के बाजो के ले जाने की मनाही पर न्यायिक जांच करवाना, कोई भी सामाजिक आपत्ति आने पर भारतव्यापी समर्थन लेकर उसका सही निर्णय कराना -- इन सब सामाजिक कार्यों में वे आगे रहते थे ।
विगत दिनो मे जैन समाज पर हुए अत्याचारो जवलपुर मे दि० जैन मन्दिर, जैन बन्धुओ की दूकानो पर आक्रमण, खाजियाघाना मे जैन मूत्तियों के सिर उतारा जाना, पुरलिया ( १० वगाल) मे स्व० १०८ मुनि चन्द्रसागरजी के शव के साथ दुव्र्व्यवहार आदि का उल्लेख करते हुए लालाजी जैनमित्र के श्रावण सुदी ६ वी० स० २४८८ के ग्रक मे नवयुवको से अपने हृदय की टीस "जैन समाज, चेत" इस शीर्षक मे इस प्रकार व्यक्त करते हैं-- "जैन समाज के नवयुवको ! समाज का भविष्य बनाने वालो ! तुम्हें क्या हो गया ? क्या नही रहा और स्वाभिमान नही जहा जो धर्म पर कुठाराघात चुपके चुपके सहन कर रहे हो और जोश नही आता । मुझे यह कहने मे जरा भी सकोच नही कि यदि हमने करवट न बदली तो भारत देश जीवित नर-नारियो का देश न रहकर केवल पहाडो नदियों तथा शहरो मे खड़ी गगन चुम्बी अट्टालिकाओ का एक देश रह जाएगा। देव, शास्त्र, गुरु की रक्षा का प्रश्न जैन समाज के लिए आज एक बडी चिन्ता का विषय है ।"
तुम्हारी रंगो में खून
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