________________
परिषद ने अपने प्रारम्भिक जीवन में अपने कार्यकर्ताओ के अथक परिश्रम से पुरानी, सदियो से ग्रस्त जैन समाज को उनसे मुक्त किया और नवीन स्फूर्ति प्रदान की जिसके कारण जैन धर्मानुयायो जातियो मे अन्तर्जातीय विवाहो को प्रचलित करके छोटी-छोटी उपजातियों के ' जीवन की रक्षा को जा सकी, मरण भोज श्रादि कुत्सित प्रथाओ को दूर किया । विवाहो में एक रोज की बारात व सामूहिक विवादो को प्रचलित करके जैन समाज की अपव्यय से रक्षा की। जिस दस्सा पूजा (विनैकवार ) के मामले मे प्रतिक्रियावादी जैनो ने जैनदस्सो को जिन पूजा से वचित करके प्रात स्मरणीय प० गोपालदास जी वरया आदि समाज-सुधारको का अपमान व बहिष्कार किया था उस दस्सा पूजा को जैन समाज से मान्यता दिलाई। श्रद्धा व शुद्धता पूर्वक जाने वाले हरिजनो के लिए जैन मन्दिर के द्वार खुलवाकर जैन धर्म की उदारता का परिचय दिया । जैन समाज को प्रगतिशील व उदार बनाने का बहुत कुछ श्रेय भाई तनसुखराय जी को है ।
देहली में परिषद का द्वितीय अधिवेशन लाल मन्दिर के मैदान में साहू श्रेयासप्रसाद जी की अध्यक्षता मे हुआ था । सभामण्डप जैन जनता से खचाखच भरा हुआ था सात भाठ हजार जनता थी । रात्रि का समय था । हरिजन मन्दिर प्रवेश का प्रस्ताव रखा जा रहा था । उस समय प्रतिक्रियावादियो का एक समूह हुल्लड़ मचाता हुआ सभा मे घुसा और मच के पास जाकर प० परमेष्ठीदास जी प्रस्तावक को खीचकर मच से गिरा दिया, जल्से में गड़वड मच गई। परिषद के कार्यकर्त्ताओ को भी सभामण्डप मे आना पड़ा। रात्रि के ११ बजे श्री राजेन्द्रकुमारजी की कोठी पर परिपद के नेता व कार्यकर्तागण एकत्रित हुए, सभा मे प्रतिक्रियावादियो द्वारा किये गये हुल्लड व अधिवेशन में पास होने वाले प्रस्तावो पर विचार विनिमय हुआ । कुछ कार्यकर्ताओ ने कहा कि प्रतिक्रियावादियो के झगडे से बचने के लिए यह अच्छा होगा कि हम जल्सा नयी देहली के जैन मन्दिर में करके हरिजन मन्दिर प्रवेश का प्रस्ताव पास कर लें । इस पर हम दोनो (भाई तनसुखरायजी व मैंने ) ने कहा कि यदि निश्चित स्थान व पडाल को छोडकर नयी देहली के जैन मन्दिर मे जलसा करके हरिजन मन्दिर प्रवेश वाला प्रस्ताव पास करलें, तो उसका कोई महत्व नही होगा, जनता यही कहेगी कि हरिजन वाला प्रस्ताव फेल हो गया । मत जल्सा लाल मन्दिर के मैदान मे निश्चित पडाल व निश्चित समय पर ही होना चाहिए, उसके प्रबन्ध की जिम्मेदारी हम दोनो ने ली । श्री तनसुखराय जी ने उसी रात को १०० स्वयसेवको का प्रबन्ध किया और अगले. दिन निश्चित स्थान व पडाल को निश्चित समय पर परिषद अधिवेशन को हरिजन मन्दिर प्रवेश - आदि प्रस्तावो को पास कराकर अधिवेशन को सफल बनाया ।
श्री तनसुखरायजी बड़े उत्साही, साहसी, वीर व लगनशील थे। कार्य करने की क्षमता उनमें अपूर्व थी। वे वडे मेहमान निवाज (अतिथि सत्कार ) थे। अतिथियो का सत्कार करते थे । कोई दिन ही ऐसा व्यतीत होता होगा जबकि उनके यहा कोई न कोई अतिथि न ठहरा हो । ऐसे प्रेमी कार्यकर्ता के निधन से जो क्षति जैन समाज मे हुई है उसकी पूर्ति निकट भविष्य मे होना कठिन ही प्रतीत होती है।
[ १११