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________________ कर्मठ सेवा-भावी कार्यकर्ता - श्री रतनलाल जैन "बिजनौर श्री तनसुखराय जी से मेरा परिचय सन् वाबू रतनलालजी जैन Ex MLA परिषद १९३४ में देहली के भा० दि० जैन परिषद के के सस्थापको मे से है। समाज और देश सेवा अधिवेशन मे हुआ था। उस समय स्वागत की ओर आपकी स्वाभाविक रुचि है। कारिणी समिति के वे प्रधान मन्त्री थे। उस त्याग और सेवा की मूर्तिमान ज्योति है। अधिवेशन के सभापति स्वर्गीय ला० सुमेरचन्द दृढ कर्मठ, साहसी और निरखे हुए समाज जी एडवोकेट थे । उस अधिवेशन का कार्य बडी के ऐसे रत्न है जिन पर जैन समाज को सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ था। उस अधिवेशन | गौरव है। आपसे युवको और तरुणो को ' में उनकी कार्यदक्षता देखकर परिपक्ष ने उन्हे वडा प्रकाश मिलता है । लालाजी के सम्बन्ध मे लिखा गया आपका सस्मरण रोचक ' मन्त्री और मुझे प्रधान मन्त्री बनाया था। और पठनीय है। श्री तनसुखराय जी ने पूरे सप्ताह के साथ परिषद के कार्य को आगे बढाया। उस समय वे देहली स्थित लक्ष्मी इन्श्योरेन्स कम्पनी के मैनेजर व सर्वेसर्वा थे । श्री अयोध्याप्रसादजी गोपलीय वधी कोमलप्रसादजी उनके साथ उपरोक्त कम्पनी में कार्य करते थे। इन दोनो सज्जनो ने सहयोग से परिषद के कार्य की प्रगति को बडे वेग के साथ बढाया । उस समय ग्वालियर राज्य के अन्तर्गत महगांव काह हुमा । यहा जैनियो की पूज्य प्रतिमाओ का घोर अपमान किया गया। इसके विरोध में परिपद ने आन्दोलन प्रारम्भ किया। उस आन्दोलन के वेग को तीन करके भारतव्यापी बना दिया । स्थान-स्थान पर जल्से हुए, भाई तनसुखरायजी ने मेरे साथ महगाव मादि स्थानो का दौरा किया। इस आन्दोलन ने जैन समाज में नया जीवन व स्फूर्ति उत्पन्न कर दी। इस युग में पहला अवसर था कि जब जैन समाज को अपनी संघ शक्ति का भान हुआ । ग्वालियर राज्य का शासन डोल गया और उसने जैन समाज से समझौता किया। वे १९४० तक मेरे साथ सहमन्त्री रहे । इस काल मे सतना व खडवा के मधिवेशन बड़े महत्व के हुए । महगाव काड के विरोध में सफलता एव खडवा आदि अधिवेशनो की सफलता का श्रेय भाई तनसुखराय जी को है। सन् १९४० में बडीत अधिवेशन मे मेरे सभापति हो जाने एव तत्पश्चात् असहयोग आन्दोलन मे मेरे कारावास चले जाने पर भाई तनसुखराय जी ने परिषद के प्रधान मन्त्री के पद को सम्भाला और उसके कार्य को बड़ी योग्यता के साथ सचालन किया। उनकी सेवायो को देखकर बड़ौत जैन समाज ने परिषद अधिवेशन के शुभ अवसर पर उनसे बड़ौत जैन कालिज की नीव रखवाई। ११० ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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