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समाज सुधारक
लाला तनसुखराय जी से मेरा परिचय दस्सा पूजा अधिकार कान्फ्रेंस के अवसर पर हुआ । उसके पश्चात् हमारे सम्बन्ध वढते ही गए और उनके प्रेम और प्रयत्न ने मुझे कांधला (जिला मुजफ्फरनगर) से दिल्ली बुला लिया । मैंने भाई साहब को बहुत निकट से देखा है । वे चोटी के 'आर्गे नाइजर' तो थे ही, उससे अधिक भी बहुत कुछ थे ।
डॉ० नन्द किशोरजी ७, बरियागंज, दिल्ली
डा० नन्दकिशोरजी लालाजी के साथियो मे से है जिन्हे लालाजी की पैनी दृष्टि ने परखा और अपने साथ रख लिया 1 वे उत्तम कार्यकर्त्ताओं को प्रोत्साहन देते थे। इसी के फलस्वरूप महगाँव काण्ड श्रावू श्रान्दोलन आदि कामो मे लालाजी को श्राशातीत सफलता मिली । डा० नन्दकिशोरजी के उद्गार प्रशसनीय है । जो इस बात को वता रहे है कि लालाजी कितने प्रतिथिपरायण थे ।
सन् १९४२ मे जबकि वे जैन मित्र मण्डल दिल्ली के प्रधान मन्त्री थे, उन्होने महावीर जयन्ती महोत्सव को सर्वप्रथम वह रूप दिया जिसकी नकल अब भी की जाती है । वह प्रथम ऐतिहासिक उत्सव था जिसमे जैन पंडितो और गधर्वो के अतिरिक्त दिगम्बर और श्वेताम्बर साधुओ के भाषण हुए थे और पार्लियामेंट के जैन तथा जैनेतर सदस्यों ने भाग लिया था । श्रावू के प्रसिद्ध जैन मन्दिरो मे प्रवेश करते समय जैन धर्म अनुयाइयो से कर लिए जाने को वह जैन समाज का अपमान समझते थे और उक्त कर से भक्ति के लिए सन् १९४२ में ब्यावर मे उनकी प्रधानता में एक विशाल कान्फ्रेस हुई थी । उन्हें जैन धर्म और जैन समाज से कितना प्रेम था । यह इससे विदित है कि तिलक इन्शोरेस कम्पनी से ( जिसके वह मैनेजिंग डायरेक्टर थे) वेतन पाने वाले कई चोटी के कर्मचारी अपना काफी समय जैन समाज के सुधार कार्यों मे लगाते थे । वे अपने साथियो पर पूर्ण विश्वास करते थे। और सदैव उन्हें आगे बढाने का प्रयत्न करते थे । उनका दस्तरखान सदैव सबके लिए विछा रहता था । ये शब्द मैने भावुकतावश नहीं लिखे है बल्कि मैने जो लिखा है वह सब स्वयं देखा है ।
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जैन क्षेत्र के अतिरिक्त जेनेतर क्षेत्र मे भी उनकी मान्यता थी। तभी तो सन् १६५४ मे
दिल्ली में होने वाले हरिजन मन्दिर प्रवेश अधिवेशन मे जब चाहा जो अशोभनीय था तो लाला तनसुखराय ने अग्रसेन दल के के द्वारो पर खड़ी कर दी ।
परिषद् विरोधियो ने वह कहना स्वयसेवको को दीवार कान्फ्रेस
जिस कदर कार्य उन्होने जैन समाज के लिए किया यदि किसी अन्य समाज मे कोई व्यक्ति इतना कार्य करता तो उसका नाम घर्म स्थानो और समाज के भवनों में स्वर्ण अक्षरों में लिखा - [ १०३