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होता । परन्तु अपना समाज व्यक्ति को सेवा और योग्यता के द्वारा नहीं बल्कि पैसे के गज से नापता है और हमारे धर्म स्थानो और समाज भवनो में उन्ही गृहस्थो के नाम के पत्थर और फोट लगाये जाते है जो उस नाप में पूरे उतरे । • प्रत्येक व्यक्ति की कुछ निजी कमिया, आकाक्षाये और विवशताये होती है जो उसके द्वारा किए गए कार्यों को या तो पूर्णरूप से प्रकाश में आने में बाधक होती है या उनका श्रेय उल्टे या सीधे तौर से दूसरो को पहुंच जाता है।
कुछ भी हो, दस्सा पूजा अधिकार, बालविवाह विरोध, हरिजन मन्दिर प्रवेश, पाबू मन्दिर टैक्स विरोध इत्यादि क्रान्तिकारी आन्दोलनो मे उन्होने प्रमुख कार्य किया था और उनके द्वारा की गई सेवाये भुलाई जाना सम्भव नहीं है । वे कहा करते थे मै परिषद का एक सिपाही हूँ और जैन समाज का तुच्छ सेवक और यही उनकी महानता थी।
यद्यपि विधि के विधान के अनुसार वे हमे सदव को छोड़कर चले गये है परन्तु उनकी , पवित्र याद हम कभी न भूल सकेंगे।
तू न होगा तो तेरी याद रहेगी।
नेकी कर दरिया में डाल
पं० परमेष्ठीदासजी जैन, न्यायतीर्थ
मालिक जैनेन्द्र प्रेस, ललितपुर (झांसी) परिषद के मन्त्री ला तनसुखराय जी जैन तो परिषद की सफलता को अपनी मुट्ठी मे लिए फिरते थे। उनके रहते हुए कभी कही कोई अव्यवस्था, गड़बडी या • परिषद के प्रभुत्व को डिगाने वाला कार्य हो ही नहीं सकता। उनके कार्यो, त्याग और उदारता
को देखकर मेरा दृढ निश्चय हो गया है कि वे परिषद के प्राण है । समाज अभी उनके त्याग को नही जान सकी है। उनका त्याग बीज के बलिदान की भाँति है, जिसका बलिदान मिट्टी में मिलना किसी को नही दिखाई देता, किन्तु उसके फल ही दिखाई देते है। इसी प्रकार समाज को यह नही मालूम कि लालाजी परिषद के लिए चुपचाप कितना बलिदान करते रहते है, किन्तु परिषद की उत्तरोत्तर सफलता देखकर ही हम सब सन्तुष्ट होते रहते है।
____मै जहां तक मालूम कर सका हूँ, ला. तनसुखरायजी परिषद के लिए अपना तन-मन लगाये हुए थे। मगर वे किसी को अपनी सेवा ज्ञात नहीं होने देते थे।
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