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लम्बा कद, गेहुँवा रग और उस पर शुद्ध खादी की अपनी शोभा फवती थी। वे एक आदर्शवादी, कर्मठ सुधारक थे। जब से उन्होने हमारे पड़ोस में अपना निवास स्थान बनाया तव से उन्हे और भी निकट से देखने का हमें भवसर मिला। मैने उनमे देश-सेवा, समाज-सेवा, आश्रम-सेवा इन दोनो शक्तियो का अद्भुत-स्रोत प्रवाहित होते देखा है। कार्य पूर्ति के लिए उनमे कठोरता भी थी और कोमलता भी परिपूर्ण थी। अगरत १९६३ के दिन उनकी अतिम विदाई के समय, जब मेरे प्रांसू भजन-धारा बनाकर वह पडे-तो, मैने उन्हे अपने सपनो मे डूबा हुमा एक समाज-सेवी, समाज-प्रहरी और देश-रक्षक तथा मानवता का पुज ही कहा ?-वे महान थे। उनका अन्तरवाहर पवित्र था। हृदय कोमल था। कर्तव्य मे कठोरता थी, पूर्ण निष्ठा थी। समाज का पतन उनके मन के दीप को जैसे बुझाने जा रहा था। और उस काल महाकाल की ओर से प्रलयकारी झझावात का एक अजीव झोका आया, जो कि उनके विचार-चित्र को गिराकर चकना-चूर करता चला गया। हृदय-गति बन्द हो गई और वे सबके देखते पाखें मूद इस नश्वर ससार की मोह माया को छोड़ अनन्त की ओर चले गए।
___ इस थोडे से जीवन में मेरा सम्बन्ध प्राय. अनेक समाजसेवियो से रहा है। मैं पूर्ण निष्ठा तथा पूर्ण विश्वास के साथ कहती हूँ कि जो व्यक्ति समाजोत्थान की चिन्ताओ के प्रति भावुक होता है, जिसका मन दर्द-पीडा से द्रवित हो उठता है, उसकी सहानुभूति उतनी ही गहरी, तीन और महान तथा क्रान्तिकारी होती है । उस क्रान्ति से देशसेवा और समाजोत्थान के लिए सुख-सौन्दयं जन्म लेता है। किन्तु उस सुख-सौन्दर्य को उपजाने वाले क्रान्तिकारी "वीर" बहुधा उस प्रसव की पीड़ा को सहन किया करते है। भैय्या तनसुखराय भी इस अपवाद के प्रतीक थे। उन्होने कितने कष्ट सहन किए । उनका व्यक्तित्व विशाल था और शक्तिशाली था। वे बिना किसी प्रपच के अपने अन्तिम दिनो तक अपने विचारो के प्रहरी और अडिग रक्षक बनकर रहे। यद्यपि कई लोग उनसे ईर्षा भी रखते थे, परन्तु उन से डर भी थे उतना ही मानते थे।
और उन्हे प्यार करते तथा आदर की दृष्टि से देखते थे। समाज-सेवा का मच उनके विना हिलता न था और समाज उनकी सेवाओ का मान करता था। ऐसे थे वे महान और ऐसी थी उनकी महान भावनाएँ।
मैं अपने सम्पर्क मे भाई अनेक घटनामो की गुत्थी को सुलझाने के लिए जब भी समयसमय पर उनके पास गई, उन्होने बडे प्रेम से, ममता से बिठाकर उन बातो को समझाया और हर बात को सफल बनाने में योग दिया करते थे। आज आश्रम का कार्य उनके बताए हुए पद चिह्नो पर चलता हुमा विशाल प्रगति की ओर चला जा रहा है। महिलाश्रम मे हायर सेकेण्ड्री स्कूल तथा छात्रावास आदि आदि योजनाएँ उन्ही की बताई हुई है। हम इन्हे सफल बनाकर रहेगे। परन्तु हमे इसके साथ-साथ इस बात का खेद है कि वे भाई जो इन परोपकारी योजनाओ के दाता थे, इनके निर्माता होने पर भी हमारे बीच नही होगे। अन्त में मै भगवान से याचना करती हूं कि उनकी शुद्ध आत्मा को शान्ति प्राप्त हो ।
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