________________
मेरे भी १४ रु० से १६ २० अर्थात् २ रु० की तरक्की शीघ्र हो गई थी। नव-जवानों को पूर्ण विश्वास आपके सहयोग का सदैव रहा है और यही कारण है कि आपके साथ कार्य करने वाला सदैव प्रसन्न व श्रीसम्पन्न रहा। संस्मरण नं. दो
सन् १९५० ई० मे दिल्ली के परेड ग्राउण्ड में विशाल पण्डाल के चारो ओर परिपद के अधिवेशन के समय पर हरिजन विरोधी आन्दोलन के कार्यकर्ता अपने मोचें लगाए हुए डटे खडे थे। दि. जैन कॉलेज के स्वयसेवक सतर्कता से ड्यूटी दे रहे थे कि यकायक लालाजी मेरे डेरे पर लपके हुए चले पाए। उम समय भाई चतरसेनजी व शीलचन्द्रजी सहित उत्तर प्रदेश के प्रमुख कार्यकर्ता विचार-विमर्श मे लीन थे कि लालाजी ने आते ही शीघ्र सेनापति की तरह आदेश दिया कि "आप लोग मेरे मकान पर शीघ्र पहुंची समस्या विकट हो चुकी है इस पर बात करनी है।" सब लोगो ने कहा कि यही बता दी जाए तो अच्छा है इस पर लालाजी एकदम विगड़ पडे वोले "विरोधियो के मोर्चे के अन्दर विचार-विमर्श करना अक्लमन्दी नहीं है, तुम जमा समझो करो मेरा काम जो था कह दिया।"
यह कहकर लालाजी यकायक चले गए। हम लोग शीघ्र लालाजी के मकान पर पहुंचे जहाँ पर मान्यवर वाबू रतनलालजी विजनौर और कुछ दिल्ली के प्रमुख सज्जन स्व. लाला नन्हेमलजी स्व० लाला रघुवीरसिंहजी लाला भगतरामजी वावू हसकुमारजी श्रादि गभीर मुद्रा में बैठे हुए कुछ सोच रहे थे।
हम लोगो को यकायक आता देखकर मुस्कराए और वोले कि "लाला तनमुखरायजी को क्या हो गया जो प्रत्येक कार्य मे वहम करने लगे है। उन्हें उपद्रव का ही खतरा समा रहा
सच यह था कि हम लोगो ने लालाजी की बात का आधा विश्वास किया था और जिन लोगो पर विश्वास किया था वे वास्तव में साथी थे नही इस बात को लालाजी अच्छी तरह जानते थे। इसीलिए वे परिपद अधिवेशन के प्रत्येक कार्य को वगैर पदाधिकारी हुए भी पूर्ण जिम्मेवारी से देखते थे।
आखिर परिपद अधिवेशन का उद्घाटन मान्यवर श्री श्रीप्रकाशजी तत्कालीन राज्यपाल वम्बई द्वारा हुआ। माननीय साहू श्रेयासप्रसादजी ने अध्यक्षता की और मच पर मा० साहू शान्तिप्रसादजी सहित जैन समाज के प्रसिद्ध कर्मठ कार्यकर्ता उपस्थित होकर अविवेशन की शोभा बढ़ा रहे थे लेकिन लाला तनसुखरायजी मच पर न आकर स्वयसेवको के पास भागे-भागे फिर रहे थे। उन्हे चैन नहीं था।
____ जिस समय मच पर व पण्डाल मे हरिजन-मन्दिर प्रवेश पर हगामा मचा उस समय सवकी आँखे लाला तनमुखरायजी पर ही जाकर टिकी। उनकी दूरदर्शिता पर सवको विश्वास हुमा । साहू बन्धुप्रो को येनकेन प्रकारेण पण्डाल से बाहर निकालकर ले जाना पड़ा। ५६