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कर्मठ सेनानी लाला तनसुखरायजी
बाबूलाल जैन जमादार नया बाजार बड़ौत, मेरठ
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इस नीति को स्मरण करते हुए हम कह सकते हैं कि लाला जी तनसुखरायजी ने समाज और वश की उन्नति मे पूर्ण सहयोग दिया। पासाधारण प्रतिभा वाले इस कर्मठ सेनानी के साथ हजारो समाज-सेवक काम करते थे। और हँसते हंसते कार्य को सफल बना देते थे।
श्री वावू लाल जी जैन 'जमादार' | बडौत कालेज में जैन धर्म के प्राध्यापक
है। प्रोजस्वी वक्ता और कुशल निर्भीक | कार्यकर्ता है। समाज को आपसे बड़ी
आशाएँ है । आप समाज के ऐसे आज्ञाकारी सिपाही है जब समाज सेवा का अवसर प्राता है तत्काल सेवा के लिए तत्पर रहते है।
लालाजी के साथ कार्य करने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ। इनमे से कुछ सस्मरण पाठको के सम्मुख उपस्थित कर रहा हूँ। संस्मरण नं०१
"मैं कहता हूँ कोई भी वालण्टियर प्रतिकार की भावना से कार्य नहीं करेगा । सिर्फ जूते ही तो हम लोगो पर पड़े है, सिर ही तो टूटे है, कौनसी बड़ी मुसीवत सामने भा गई जो हम प्रतिशोध की ज्वाला मे जलने लगे है। जलसा होगा और उसी स्थान पर होगा जहाँ वावू रतन लाल जी व वाबूलाल धनुजी पिटे है। लेकिन नवजवानो हिम्मत से काम लो और रात्रि को मीटिंग मे अधिक से अधिक उपस्थित हो जानो तुम्हारा दस्सा पूजाधिकार प्रस्ताव निश्चित पास
होगा।"
"परिवर्तनशील संसारे मृत को वा न जायते ।
स जातो येन जातेन याति वंश्च समुन्नतिम् ।। इन वाक्यो को सुनकर नवयुवको मे असीम चेतना जागृत हुई। बडौत, मुजफ्फरनगर, सरधना तथा दिल्ली के युवको ने अपने नायक की बात मानकर अदम्य उत्साह से सभा-स्थल की भोर कूच किया। और अपने "दस्सा-पूजा-अधिकार" का प्रस्ताव उस प्रागण मे पास किया जहाँ पर दस्सो के विरोधी लोगो ने मारपीट कर के उन्हें पीछे हटा दिया था।
___ उपयुक्त घटना १९३८ ई० मे श्री हस्तिनापुर क्षेत्र के विशाल मेले पर परिषद के जलसे के समय पर घटित हुई थी। दस्सा पूजा अधिकार के पक्ष वालो की काफी पिटाई शास्त्र सभा-स्थल पर ही हुई थी जिसमे लाला तनसुखरायजी ने अदम्य साहस का परिचय दिया था। इसमे भाई वीलचन्द्रजी मवाने वालो की खतौली पाठशाला में लगी हुई नौकरी छूटी थी लेकिन लालाजी के सहयोग से दैनिक 'विश्वामित्र' में नियुक्ति शीघ्र हो गई थी।