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________________ स्वसमरानन्द । (६६) संस्तव क्रियाने अपने असली रूपको सम्हाला है, अपने ही शुद्ध गुणों के अनुभव रूपी स्तुतिमें भीजी हुई चेतनकी सर्व सेनाऔमें ऐसी सुन्दरता फैला रही है मानो सारी परिणाम रूपी सेनाको किसी अपूर्व विनयके लाभमें शांतमय पुरस्कार ही प्राप्त हुभा है। *. यह संस्तव क्रिया चेतनको स्वस्वरूप व स्यबलके स्मरणमें सावधान रखती हुई मोहके मनोहर ज्ञानरूपी जाल में पड़नेसे बचाती है। सामायिक क्रियाकी सेना तो बहुत ही बहारदार है । इसके सर्व योद्धामोंकी सुरत एक सी परम शांतमय और मनोहर है। सर्वका डीलडौल भी बरावर है। पोशाक भी सर्वत्री एकसी श्वेत रंगकी है। यह सेना चेतनकी सारी सेनाओंकी जान है । इस सेनाके योद्धाओंके बान भी बड़े तीक्ष्ण व एक साथ चोट देनेवाले हैं, जिसकी चं टसे कर्मशत्रुके दलके दल स्वाहा हो जाते हैं। यह परम स्वात्मगुणानुरागिणी वीतरागताकी क्रांतिसे चमकनेवाली सामायिक क्रिया चेतनको अपनी शुद्ध भूमिमें दृढ़ताके साथ स्थिर रखनेवाली है, और ऐसी तेजशाली है कि इसके सामने शत्रुका एक भी योडा चेतनके सेनाकी भूमिकामें प्रवेश नहीं कर सक्ता। कायोत्सर्ग क्रियाकी सेना अपनी दृढ़, ऊंची, एकता, शांतता च निज मनन रूपी पताकाको फहराये हुए चेतनकी सारी सेनाकी रक्षाके लिये दृढ़ स्तंभ स्वरूप है । इस क्रियाके प्रतापसे चेतन अपने सर्व शुद्ध परिणामोंके योद्धाओंके बलोंको एक साथ अनुभव करता हुआ परम तप्त रहता है और ज्यों १ इस क्रियाका सहारा
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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