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________________ (६५) स्व सेमरानन्द ! संकल्प विकल्पों की परवाह न कर अपने निर्विकल्प स्वरूपके जानन मानन में तल्लीन रहता हुआ निज स्वामी चेतनको शत्रु दलसे हर तरह बचाता है । इस तरह पंचेन्द्रिय निरोध रूपी सेनाए अपना कर्तव्य भले प्रकार करती हुई चेतन रूपी राजाकी सेवा बजा रही हैं । उधर देखा जाता है तो छह आवश्यक क्रियाओंकी गंभीर सेनाएं अपना ऐसा संगठन किये हुए हैं कि जिससे चेतनको अपनी सेनाका पूर्ण विश्वास है । प्रतिक्रमणकी क्रिया पिछले दोपों को हटाती हुई, जब अपने निश्चय स्वरूपमें परिपक्क हो जाती है तत्र चेतनकी भूमिमें शुद्धता स्वच्छता व मनोहरता ही दीखती है और ऐसी अपूर्व छटा झलकती है कि मानों चेतनकी सर्व सेनाओंमें अमृत- जल ही छिड़का हुआ है । यह दोष निर्मोननी सेना अपनी दृढ़ता से दोषजनित शत्रु दर्लोके आगमनको रोके रखती हैं। प्रत्याख्यानकी क्रिया आगामी दोषों से रागभाव छुड़ाती हुई अपने निश्चय स्वरूप में रह कर चेनतको निःशक रखता है और उसे अपनी सत्ता व उसकी शक्तिका पूरा २ उपयोग करनेकी स्वतंत्रता यह निर्मल सेना अत्यागसे आनेवाले शत्रु देती है । " 1 वंदना क्रियाकी सेना जब अपनी व्यवहारकी शिथिल प्रवृतिमें थी तब कर्म शत्रुओंके लिये घर कर दिया करती थी, परन्तु अब यह सेना अपने शुद्ध आत्म स्वरूपमें ही लौलीन है, उसकी पूजा में ही तन्मय है, चेतनको शुद्ध भावमें जागृत रखते हुए यह सेना भी शत्रुओंके आक्रमण से बची रहती है । प्रदान करती है । दलको नहीं आने
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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