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खसमरानन्द ।
बिलकुल बेखटके हो गया है जैसे कोई युद्ध से लड़ते २ थककर विश्राम लेता है और तब आराम में मन हो जाता है। ऐसे ही यह धीरवीर अपने अन्तरंग में अपने आन्तरिक चैनमें डूब गया है । सत्य तो यह है कि जो साहसी होता है वही उद्योगके बलसे मीठे फलोंको चखता है। यह आत्मघन-धनी अपने प्रभा वशाली तेजसे निजमें लय हो स्वसमरानन्दका स्वादभोग अकल और अमन हो रहा हैं ।
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यह आत्माराम ग्यारहवें गुणस्थान में पहुंच कर और सारे 'मोहके खास योद्धाओं को दबाकर परम शांत और यथाख्यातचारित्रमें मन हो गया है और अपने शुक्लध्यानकी तन्मयतामें लीन हो कर्म - शत्रुओंके बलसे मानो निडर हो गया है। इसको इस वीतराग परिणति में रमते हुए जो आनन्द होता है उसका स्वाद लेते हुए अन्य सर्व स्वद व अन्य सर्व विचार लुप्तरूप हो गये हैं । जैसे कोई विषयान्ध राजा किसी स्त्रीके प्रेममें मुग्ध होता. हुमा रनवासमें बैठा हो और उसके किलेके बारह शत्रुकी सेना डेरा डाले पड़ी हुई हो। उसी तरह इस श्रेणीवालेकी दशा हो रही है । इस वीर आत्माकी ध्यान खड़गकी चोटोंसे मोहनीयकमेकी जो मुख्य २ सेनाएं चपेट खाकर गिर पड़ी थीं और थोड़ी देर याने केवल अन्तर्मुहूर्तके लिये अचेत हो गई थीं, वे एकाएक सचेत होनी शुरू होती हैं । देखते २ ही संज्वलन लोमरूपी योद्धा, जो अभी थोड़ी देर पहले ही अचेत हो गया था, उठता 'है और अपने आक्रमणसे उस बेखबर आत्मबीर को ऐसा दबाता