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खसमरानन्द ।
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नीचे बैठ जाती है और यह एकाएक ग्यारहवीं श्रेणीमें पहुंच जाता है । अब यहां चारित्रमोहनीयकी सर्व २१ प्रकृतियोंकी सेना उपशांत हो गई है। वीतराग चारित्ररूपी परम मित्रकी अब सहायता प्राप्त हो गई है । उपशांतमोह गुणस्थानके स्वभाव में निश्चल रह वीतराग विज्ञानताका आनन्द अनुभव करना इसका कार्य हो गया है। अब यहां मोहके दबनेसे ज्ञानावर्णीकी १, दर्शनावर्णीकी ४ अंतरारायकी ५, नामकर्ममें यशकीर्ति और उच्चगोत्र ऐसे १६ प्रकृतियों की नवीन सेनाओंका माना बन्द हो गया है, केवल सातावेदनीयकी ही सेना आती है। इसके पहले ६० प्रकृतियों की सेना सामने खड़ी थी, यहां संज्वलन -लोभने विदा ली, केवल ५९ सेनाएं ही मुकाबले में हैं । यद्यपि मोहराजाके युद्ध क्षेत्रमें अब भी १४२ प्रकारकी I सेनाएं डेरा डाले पड़ी हैं । यथाख्यातचारित्रके सम्यक् अनुभव में इस आत्मवीर के शुद्धोपयोगकी अनुपम छटाका वचनातीत आनंद - प्राप्त हो रहा है । इसके आनंदमें मैं सिद्धस्वरूप हूं - यह विकल्प भी स्थान नहीं पाता । अब यह मुक्ति-महलके बहुत करीब हो गया है, अपनी पूर्व अवस्था क्या थी यह भी विकल्प नहीं उठाता । आत्मावीर अपने अंतरंगमें ६ द्रव्यका नाटक देख रहा है, परन्तु आश्चर्य यही है कि उसमें अपने भावको रमाता नहीं । सिवाय निजात्म भूमिके उसका उपयोग कहीं जाता नहीं । उस भूमिमें विराजित निम अनुभूति सखीसे ही हर समय वार्तालाप करना - इसका काम हो गया है । यद्यपि अभी बहुतसी सेनाएं खड़ी हैं तथापि मोहके खास २ योद्धाओंके युद्धसे मुंह मोड़ लेने पर यह