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स्वसमरानन्द
कर दिया है, केवल १७ प्रकृतियोंकी नई सेना आती है। तो भी सामना करनेको अभी ६० दलोंकी एकत्रता हो रही है। केवल यहां स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, संज्वलन क्रोध, मान, माया ऐसे छह दलोंने सामना करना बंदकर दिया है। 'परन्तु मोहके सत्तामय युद्धस्थलमें अभी १४२ प्रतियोंकी सेना मौजूद है। जितनी ९ वी में थी उतनी ही है । मोहको युद्धमें हटाना कोई सुगम कार्य नहीं है। मोहके गोरखधन्धेको काट 'डालना किसी साधारण गरुड़का काम नहीं है । इसके लिये सच्चा श्रद्धानी साहसी वीर पुरुष ही होना चाहिये । निसने तत्त्वामृतसे अपने आत्माको धोना प्रारम्भ किया है, निसने सर्व ओरसे उपयोग हटा एक निजमें ही निजको थामा है, जिसने सम्यकदर्शन, ज्ञान चारित्रके तीनपनेको मिटा दिया है, जिसने निन शक्तिकी लुप्तता हटा डाली है-वही धीरवीरं इस पदमें पहुंचकर स्थिर हो जाता है और रहे सहे अत्यन्त निर्बल लोभकी सेनाको भी भगानेका उद्यम करता है। ऐसे ही उद्योगशीलं मोक्ष पुरुषार्थीको भवविपिननिरोधक स्वसमरानंदका विलास आत्माके अनुभवमें प्राप्त होता है।
. गुणगणसमृद्धि-धारी अनुपम धाम-विहारी चैतन्यपदविस्तारी मुक्तितिया संमोहकारी आत्मवीर मोहके साथ युद्ध करते २ अति दृढ़ हो गया है । यह वीर अपने शुद्धोपयोग योद्धाके बलिष्ठ सिपाहियोंके प्रभावसे संज्वलन-लोभकी सेनाको ऐसा छिन्नभिन्न और दुःखी कर देता है कि वह सारी सेना दबकर