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________________ मेवाड़ के वीर नाराचंद खण्ड-खण्ड है जाय बरु, देतु न पाछे पैड़। लरत सूरमा खेत को मरत न छोड्तु मेड़ ॥ -वियोगिहरि वीर ताराचन्द राणा उदयसिंह के प्रधान भारमल का सुयोग्य पुत्र और मेवाडोद्धारक भामाशाह का भाई था। यह स्वभाव से ही वीर प्रकृति का मनुष्य था। हल्दी-घाटी का युद्ध फैसा भयानक हुआ? इसकी साक्षी इतिहास के पृष्ठ पकार २ कर दे रहे हैं ।। २१ हजार राजपतों ने मेवाड़ की स्वतंत्रता के +स इतिहास प्रसिद्ध हल्दीघाटी के प्रति श्री. सोहनलाल द्विवेदी ने लिखा है :रागिनि-सी बीहड़ वन में, कहाँ छिपी बैंठी एकान्त । मातः आज तुम्हारे दर्शन को, मैं हूँ व्याकुल उद्धान्त। तपस्विनी, नीरव निर्जन में, कौन साधना में तल्लीन । बीते दिन की मधुरस्मृति में, ज्या तुम रहती हो लवलीन।। * जगतीतल की समरभूमि में, तुम पावन हो लाखों में। दर्शन दो, तव चरण-धुलि, ले लँ मस्तक में, आँखों में। तुम में ही हो गवे वतन के लिए अनेकों वीर शहीद । तुम सा तीर्थस्थान कौन, हम मतवालों के लिए पुनीत ।। आजादी के दीवानों को, क्या जग के उपकरणों में। मन्दिर मसजिद गिरजा सब तो, वसे तुम्हारे चरणों में। .
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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